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________________ 84 ¿ भगवतीस भगवतः टीका -- 'रायगिहे जाव एवं वयासी' राजगृहे यावदेवमवादीत् यावत्पदेन परिषन्निर्गता, भगवता धर्मोपदेशः कृतः परि समागमनमभूत् पत्मविगता, ततो गौतमो भगवन्तं वन्दते नमस्यति वन्दित्वा नमस्यित्वा पयु - पासीनः प्राञ्जलिपुटो गौतमः, एतदन्तमकरणस्य संग्रहो भवति । किमवादीत ? त्राह - 'कणं' इत्यादि, 'कह णं भंते! खुड्डा जुम्मा पन्नत्ता' कति खलु भदन्त । क्षुद्रा युग्माः प्रज्ञप्ताः ? ते च महान्तोऽपि भवन्त्यतः क्षुल्लकशब्देन विशेषिताः तत्र चत्वारोऽष्टौ द्वादशेत्यादि संख्यावान् राशिः क्षुल्लकः कृतयुग्मोऽभिधीयते । प्रथम उद्देशक का यह आदि सूत्र है- 'रायगिहे जाव एवं वयासी'इत्यादि सूत्र ॥१॥ टीकार्थ - 'रायगिहे जाव एवं वयासी' राजगृह नगर में यावत् इस प्रकार से पूछा यहां यावत्पद से ऐसा प्रकरण गृहीत हुआ है- भगवान् महावीरस्वामी यहां पर पधारे, परिषदा धर्मोपदेश सुनने के लिये अपने-अपने स्थान से उनके पास आई, भगवान् ने धर्मोपदेश दिया, श्रर्मोपदेश सुनकर सभा विसर्जित हो गई, तब गौतम ने भगवान् को वन्दना की नमस्कार किया, बन्दना नमस्कार करके फिर गौतमस्वामीने प्रभुश्री की पर्युपासना करते हुए दोनों हाथ जोडकर ऐसा पूछा- क्या पूछा ? सो प्रकट किया जाता है- 'फइ णं भंते ! खुड्डा जुम्मा पन्नत्ता' हे भदन्त ! क्षुद्रयुग्म कितने कहे गये है? ये वडे भी होते हैं । इसलिये यहां क्षुल्लक शब्द से इन्हे विशेषित किया गया है। इस प्रकार जो लघु संरूपावाली राशि विशेष है वह क्षुत्रकृतयुग्म है । चार, आठ, चारह 3 शतना सूत्रार आरम ४२ . - 'रायगिहे जाव एब' वयासी' धत्याहि टी अर्थ - 'रायगिहे जाव एवं वयासी' रामगृह नगउभा ભગવાન્ મહાવીરસ્વામીનું સમવસરણ થયુ પરિષદ ભગવાનને વદના કરવા નગરની બહાર નીકળી ભગવાનની સમીપે આવી, ભગવાને તેને ધમ દેશના સ’ભળાવી ધદેશના સાંભળીને પરિષદાએ પ્રભુશ્રીને વંદના કરી નમસ્કાર કર્યાં, વંદના નમસ્કાર કરીને પરિષદા પાતપેાતાના સ્થાને પાછી ગઈ તે પછી ગૌતમસ્વામીએ ભગવાનને વદના કરી નમસ્કાર કર્યાં વંદના નમસ્કાર કરીને પ્રભુશ્રીની પ थाना ४२तां थडा गौतमस्वामीशे प्रभुश्रीने या प्रमाये पूछयु - ' कइण भते ! खुड्डा जुम्मा पन्नता' हे भगवन् क्षुद्रयुग्भ डेटा उडेस है ? समराशीने युग्म કહેવામાં આવે છે, અને તે માટા પણ હાય છે. તેથી અહિયા ક્ષુલ્લક શબ્દથી તેને કહેલ છે. આ રીતે જે લઘુ સખ્યાવાળી રાથી વિશેષ હાય તે ક્ષુદ્રયુગ્મ છે. ચાર, આઠ, ખાર, વિગેરે સખ્યાવાળી રાશી ક્ષુલ્લકકુતયુગ્મ છે,
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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