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________________ errears ६६ 19 सश्याः यावत्पदेन स्त्रीवेदकपुरुषवेदकयोः संग्रहो भवति, ततश्चैते सर्वेऽपि क्रियावादिनोऽपि भवन्ति अक्रियावादिनोऽपि भवन्ति अज्ञानिकवादिनो वैनयिकचादिनश्वापि भवन्ति विलक्षण तादृश परिणामवत्त्वादिति । 'अवेद्गा जहा अलेस्सा' वेदाः सामान्यतो वेदरहिता जीवाः अलेश्य जीवव देव केवलं क्रियावादिनो भवन्ति न तु अक्रियावादिनो नो अज्ञानिकवादिनो नो वैनयिकवादिनी वा मनन्तीति भावः, 'सकसाई जाव लोभकलाई जहा सलेस्सा' सकपायिनो यादन् लोभकपाथिनः सले जीववदेव क्रिपवादिनो पे अक्रियावादिनोऽपि अज्ञानिकयादिनोऽपि वैनयिकवादिनोऽवि तीति यावत्पदेव क्रोधरूपायि मानकपापि मायानपायिनां ग्रहणं भवतीति 'अकसाई जहा अलेस्सा' अकपाविनोऽश्वदेव केवलं क्रियाजीवों के जैसे क्रियावादी भी होते हैं पास भी होते हैं, अज्ञानवादी भी होते हैं और वैनयिकबादी भी होते है । क्योंकि इनके ऐसे ही विलक्षण परिणाम होते हैं। यहां यानपद से स्त्री वेदक और पुरुष वेदक इनका ग्रहण हुआ है। 'अवेदगा जहा अलेस्ला' सामान्य से वेद रहित जीव अलेश्य जीवों के जैसे केवल किषावादी ही होते हैं। अक्रियावादी नहीं होते हैं, अज्ञानवादी नहीं होते हैं और वेनfararat भी नहीं होते हैं । 'सकसाई जाव को बसाई जहा सलेस्सा' सकषायी जीव यावत् लोभकषायी जीव सुलेश्य जीवों के जैसे क्रियावादी भी होते हैं और अक्रियावादी भी होते हैं, अज्ञानवादी भी होते हैं और चैनषिकवादी भी होते हैं । यहाँ यावत् पद से क्रोध कषायी मान कषायी और पाया कपायी जीवों का ग्रहण हुआ है । 'अफसाई લેશ્યાવાળા જીવાના કથન પ્રમાણે ક્રિયાત્રાદી પણ હાય છે, અક્રિયાવાદી પણ હાય છે, અજ્ઞાનવાદી પણ હાય છે, અને વૈયિકવાદી પણ હાય છે. કેમ કે તેના પરિણામે એવા વિલક્ષણ જ હાય છે. અહિયાં ચાવúદથી स्त्रीवेद्दत्राणा भने ५३षवेवामा ग्रहण हराया है. 'अवेद्गा जहा अलेस्सा' સામાન્યથી વેદરહિત જીવા અલેક્ષ્ય જીવેાના કથન પ્રમાણે કેવળ ક્રિયાવાદી જ હાય છે, અક્રિયાવાદી ાતા નથી તથા અજ્ઞાનવાદી પણ હાતા નથી અને वैनयिवाही पशु खाता नथी. 'सकलाई जाव लोभकसाई जहा सलेस्सा' કષાયવાળા જીવા ચાવત્ લેાલકષાયવાળા જીવા લેશ્યાવાળા જીવાના કથન પ્રમાણે ક્રિયાવાદી પણ હાય છે, અક્રિયાવાદી પણ હાય છે, જ્ઞાનવાદી પણુ હાય છે. અને નૈનિયકવાદી પણ હાય થ. અહિયાં યાવત્ પથી માનકષાય વાળા, માયાકષાયવાળા, અને લાભકષાયવાળા, જીવા ગ્રહણ કરાયા છે,
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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