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________________ १० भगवतीचे इत्यादि । 'गोमा' हे गौतम! 'सन्वत्थोवा अणतपएसिया खंधा निरेया' सर्वस्वोका अनन्वयदेशिकाः स्कन्धा निरेजाः - कम्पनादिरहिताः अनन्तमदेशिकस्कन्ध (१ सर्वेभ्योऽल्पा एव भवन्तीत्यर्थः, एतदपेक्षया 'सेवा अनंतगुणा' सैजा अनन्तगुणाः निरेजानन्तप्रदेशिक स्कन्धापेक्षया सैंजा अनन्तमदेशिक स्कन्धाः अनन्तगुणा अधिका भवन्ति वस्तुस्वभावत्वादिति । एतदेव द्रव्यार्थ तदुभयार्थे निरूपयन्नाह'एसि णं' इत्यादि, तंत्र द्रव्यार्थायाम् अष्टौ पदानि एवं प्रदेशार्थतायामपि अष्ट और कौन फिनसे विशेषाधिक हैं ! इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं"गोमा ! सव्वत्थोवा अणतपएसिया खंधा निरेया" हे गौतम ! संघ से कम वे अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध हैं जो निष्क्रम्प हैं । 'सेवा अणंतगुणा" इनकी अपेक्षा जो सकम्प अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध हैं वे अनन्त गुर्णे अधिक है क्योंकि ऐसा ही इनका स्वभाव है । "एएसि णं भंते ! परमाणु पोग्गलाणं संखेज्जपएसियाणं असंखेज्जपएसियाणं अनंतएसियाणं धाण सेयाणं निरेयाण य दव्वट्टयाए पऍसट्टयाए दव्वह पट्टयाए करे करेहिंतो जाव बिसेसाहिया वा" यहां परमाणु पुद्गलों के संख्यातप्रदेशिक स्कन्धों के असंख्यात प्रदेशिक स्कन्धों के और अनन्तप्रदेशिक स्कन्धों के सकम्प अकम्प पक्ष के द्रव्यरूपता में आठ विकल्प, प्रदेशरूपता में आठ विकल्प और उभयरूपता में जो १४ विकल्प होते हैं वे ही प्रकट किये जा रहे हैं- इनमें गौतमस्वामी ने प्रभु श्री से ऐसा पूछा है - हे भदन्त । सकम्म और अकम्प परमाणु पगलों में संख्यातप्रदेशी स्कन्धों में, असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों में और • भी प्रश्न उत्तरमा ' अनुश्री गीतभस्त्राभी ने उडे - गोयम्मां सव्वत्थोवा अणतपसिया खंधा निरेया" हे गौतम! सौथी सोछा अनंत प्रदेशोवाजा ४६ छे “सेया अनंतगुणां" तेना उरत ने सप अंनतप्रदेशेोवाणा २४६ हे, ते अनंता अधिक हे भो तेमनो स्वभाव सेवा हे “एसि णं भते ! परमाणुपोग्गलाण' संखेज्जप एसियाण, खंधाण' सेयाणं निरेयाणय दुव्त्र टूयाए पं सट्टयाए दव्वट्टपरसट्टयाए कयरे कयरेहिंतो जाव विसेवाहिया वा' मडियां परमाणु પુત્લાના સખ્યાત પ્રદેશેાવાળા સ્કંધાના, અસખ્યાતપ્રદેશેાવાળા સ્કંધાના, મને અન’તપ્રદેશેાવાળા ધેાના સ'પ અને અકપ પક્ષના દ્રવ્યર્પણામાં આઠ વિકલ્પ" પ્રદેશણામાં આઠ વિકલ્પ, અને બન્ને પ્રકાર પણામાં જે ૧૪ ચૌદ વિકલ્પે થાય છે. એ જ ખતાવવામાં આવે છે. આ વિષયમાં ગૌતમસ્વામીએ પ્રભુ શ્રી ને એવું પૂછ્યું છે કે–હૈ, ભગવન સકમ્પ અને અકપ પરમાણુ પુદ્દગલામાં. સંખ્યાતપ્રદેશવાળા સ્કંધામાં, અસ ખ્યાત પ્રદેશેાવાળા ધામાં અને
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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