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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.४ सू०११ पुद्गलानां कृतयुग्मादित्वम् ६१ स्कन्धः किं साझेऽनोवेति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'सिय सड़े सिय भणड़े' स्यात् सार्द्ध: स्यात्-कदाचित् अनर्द्धः, तत्र या समसंख्पप्रदेशात्मकः स्कन्धः स तु सार्द्ध: यस्तु विपसंख्यप्रदेशात्मकः स स्कन्धोऽनई इति । एवं असंखेज्जपएसिए वि' एवम्-संख्येयप्रदेशात्मकस्कन्ध इव असंख्येयप्रदेशात्मकस्कन्धोऽपि स्यात्-कदाचित् साद्धः कदाचिदनद्धश्चेति । 'एवं अनंतपएसिए वि' एवम्-असंख्येयप्रदेशात्मकस्कन्धवदेव अनन्तपदेशिकस्कन्धोऽपि स्यात् सार्द्धः स्यादनद्ध इति । 'परमाणुपोग्गला णं भंते ! कि सड़ा अनड्रा' परमाणुपुद्गलाः खलु भदन्त ! किं सार्की अना वेति प्रश्नः । भगवा. .. 'संखेज्जपएसिए णमंते ! पुच्छा' हे भदन्त ! सख्यातप्रदेशिक स्कन्ध क्या सार्द्ध होता है अथवा अनर्द्ध होता है ? इसके उत्तर में प्रभु श्री कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! 'सिय सडू सिय अणड़े' संख्यात. प्रदेशी स्कन्ध कदाचित् सार्द्ध होता है और कदाचित् अनई होता है। समें जो संख्पात प्रदेशी स्कन्ध समान संरूपावाले प्रदेशोंवाला होता है वह साई होता है और जो विषम संख्यावाले प्रदेशोंवाला होता है वह अनर्द्ध होता है । 'एवं असंखेजप एसिए वि' संख्यात प्रदेशात्मक स्कन्ध के जैसा असंख्यात प्रदेशात्मक स्कन्ध भी कदाचित् सा होता है और कदाचित् अनर्द्ध होता है । 'एवं अणंतपएलिए वि" इसी प्रकार से अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध भी होता है। अर्थात् अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध कदाचित् सार्द्ध होता है और कदाचित् अनर्द्ध होता है। 'सखेज्जपएसिए णं भंते पुच्छा' 8 लगवन् सभ्यात अशापाणे ४५ સાઈ–અર્ધમાગ સહિત છે? અથવા અન–અર્ધભાગ વિનાને છે? આ प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री गौतमत्वामीन ४७ छे -'गोयमा!' 3 गौतम ! 'सिय सडढे सिय अणड्ढे' सभ्यात प्राणी २४५ वा२ सा छाय છે. અને કોઈવાર અનર્ધ–અર્ધા ભાગ વિનાનો હોય છે. આમાં જે સંખ્યાત દેશી કંઈ સરખી સંખ્યાવાળા પ્રદેશેવાળો હોય છે, તે સાર્ધ હોય છે. અને જે વિષમ સંખ્યાવાળા પ્રદેશવાળ હોય છે, તે અર્ધભાગ વિનાને डाय छे. 'एव असंखेज्जपएसिए वि' भ्यात अशा २४ जना स्थान प्रभारी અસંખ્યાત પ્રદેશેવાળ ધ પણ કેઈવાર અર્થે ભાગવાળ હોય છે અને छ वा मन -अर्धामा विनानी डाय छे. 'एव अणंतपएसिए वि' मेर પ્રમાણે અનન્ત પ્રદેશવાળે સ્કંધ પણ અસંખ્યાત પ્રદેશવાળા કંધના કથન પ્રમાણે કઈવર સાઈ હેય છે અને કોઈવાર અધભાગ વિનાને હોય છે.
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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