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________________ प्रौपचन्द्रिकाटोका श०२५ उ.४ २०९ पुद्गलानां कृतयुग्मादित्वम् ८६१ द्विपदेशिकाः स्यात् कृतयुग्माः, 'नो तेओगा' नो योजाः, 'सिप दावरजुम्मा' स्याद् द्वापरयुग्माः, 'नो कलिओगा' नो कल्योजाः, 'विहाणादेसेणं नो कडजुम्मा 'नो तेोगा दावरजुम्मा नो कलि भोगा' विधानादेशेन-तत्तद्रपेग नो कृतयुग्म्मा: 'नो योजाः द्वापरयुग्माः नो कल्योजा भवन्तीति, द्विपदेशिकाः स्कन्धाः यदासामान्यरूप से पुद्गल परमाणुपदेश की अपेक्षा करके भजना से चारों राशिरूप होते हैं-कदाचित् वे कृतयुग्मरूप भी होते हैं, कदाचित् योजरूप भी होते हैं कदाचित् द्वापरयुग्मरूप भी होते हैं और कदाचित् कल्पोजरूप भी होते हैं। - 'विहाणादेसेणं' परन्तु विधान की अपेक्षा से एक २ परमाणु की 'अपेक्षा से वे न कृतयुग्नरूप होते हैं, न गोजरूप होते हैं। न द्वापर'युग्मरूप होते हैं किन्तु कल्योजरूप ही होते हैं। - 'दुप्पएसियाणं पुच्छा' हे भदन्त ! जो द्विप्रदेशी स्कन्ध हैं वे क्या प्रदेशों की अपेक्षा लेफर कृतयुग्म रूप होते है ? अथवा योजरूप होते हैं ? अथवा द्वापरयुग्मरूप होते हैं ? अथवा कल्योजरूप होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा! हे गौतम ! 'ओघादेसेणं सिप कडजुम्मा' सामान्य रूप से द्विप्रदेशी स्कन्ध प्रदेशों की अपेक्षा चारों रूप नहीं होते हैं-किन्तु कदाचित् वे कृतयुग्मरूप होते हैं और कदाचित् वे द्वापरयुग्मरूप होते हैं । 'नो तेओगा नो कलि कईजम्मा जाव सिय कलिओगा' ७ गोतम ! सामान्य३५थी पुस ५२मारा * પ્રદેશની અપેક્ષા કરીને ભજનાથી ચારે રાશિ રૂપ હોય છે. કેઈવાર તે ફયુમ રૂપ પણ હોય છે કે ઇવાર એ જ રૂપ પણ હોય છે, કોઈવાર દ્વાપરયુગમ ''३५ ५ डाय छ भने ३.४॥२४८ये ३५ डाय छे. 'विहाणादेसेणं' ५२ तु विधा. નની અપેક્ષાથી એટલે કે એક એક પરમાણુની અપેક્ષાથી તેઓ કૃતયુગ્મ રૂપ હતા નથી. જે રૂપ પણ કહેતા નથી. અને દ્વાપરયુગ્મ રૂપ પણ હોતાં નથી, પરંતુ ये ३५ र डोय छे 'दुप्परसियाणं पुच्छा' के मशवन में प्रशाणारे “કે છે, તેઓ શું પ્રદેશોની અપેક્ષાથી કૃતયુમ રૂપ હોય છે? અથવા ' જ'રૂપ હોય છે? અથવા દ્વાપરયુગ્મ રૂપ હોય છે? અથવા કાજ રૂપ 'डाय १ मा प्रश्नना 6त्तरमा प्रभुश्री ४३ छे -'गोयमा!' है गौतम ! और सिय कडजम्मा' सामान्यपाथी मे अशा २४ थे। प्रशानी અપેક્ષાએ ચારે રાશિવાળા હોતા નથી. પરંતુ કોઈવાર તેઓ કૃતયુગ્મરાશિ '३५ हाय छ, भने आवार तमा ५२युभराशि ३५ डाय छ, 'नो तेओगा नो कलिओगा' तसा या४२॥शि ३५ मया ४८य१०४२॥शि ३५ खाता नथा.
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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