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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.४ सू०९ पुद्गलानां कृतयुग्मादित्वम् ८५३ द्वापरयुग्मः कल्योजो वा भवतीति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'णो कडजुम्मे' नो कृतयुग्मरूप एकः परमाणुः ‘णो तेओए' नो योजः 'नो दावरजुम्मे' नो द्वापरयुग्मः किन्तु 'कलिओगे' कल्पोज एकत्वादिति । 'एवं जाव अर्णपएसिए खंचे' एवं परमाणुपुद्गल प्रदेव यावत् अन तपदेशिकस्कन्धोऽपि कल्योजरूप एव ज्ञातव्यो न तु कृतयुग्मादिरूप इति । अथ बहुत्वमाश्रित्य पृच्छति-'परमाणुपोग्गलाणं भंते !' परमाणुपुद्गलाः खलु भदन्त ! 'दबट्ठयाए कि कडजुम्मा पुन्छा' द्रव्यार्थतया कि कृतयुग्माः पृच्छा हे भदन्त ? परमाणवः किं कृतयुग्माः व्योजाः द्वापरयुग्माः वल्पोना वेति प्रश्नः । भगवापुद्गल क्या 'दवठ्ठयाए कि कडजुम्मे तेओए दावरजुम्मे कलि भोगे" द्रव्यरूप से कृतयुग्मरूप है ? अथवा योजरूप है ? अथवा द्वापरयुग्म. रूप है ? अथवा फल्योजरूप है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं'गोयमा ! णो कडजुम्मे णो तेओए, नो दावरजुम्मे, कलिओगे' हे गौतम ! एक पुद्गल परमाणु कृतयुग्मरूप नहीं है, योजरूप नहीं हैं, द्वापरयुग्मरूप नहीं है। किन्तु कल्योजरूप है । क्यों कि वह एक है इसलिये । 'एवं जाव अर्णतपरसिए खंधे' इसी प्रकार से यावत् अनंत. प्रदेशिक स्कन्ध भी कल्योजरूप ही है। 'परमाणुपोग्गलाणं भंते व्वयाए कि कडजुम्मा पुच्छा' अघ श्रीगौतमस्वामी बहुत्व को आश्रित करके प्रभुश्री से ऐसा पूछते हैं'परमाणुगोग्गलाणं भंते ! दवट्टयाए किं कडजुम्मा पुच्छा' हे भदन्त ! समस्त परमणु पुद्गल क्या. द्रव्यरूप से कृतयुग्मरूप हैं ? अथवा योजरूप हैं ? अथवा द्वापरयुग्मरूप हैं ? अथवा कल्योजरूप हैं ? इसके उत्तर 'दबट्टयाए कडजुम्मे तेओए दावरजुम्मे कलिओगे' द्रव्यपाथीकृतयुग्म ३५ छ ?' અથવા જ રૂપ છે? અથવા દ્વાપરયુગ્મ રૂપ છે? અથવા કોજરૂપ છે ? मा प्रश्नना उत्तरमा प्रभुश्री गौतमपामीन ४ छ -'गोयमा! णो फडजुम्मे णो वेओए णो दावरजुम्मे कलिओगे' 3 गौतम ! ४ पुस ५२मा त. યુમ રૂપ નથી. જ રૂપ નથી. દ્વાપરયુગ્મ રૂપ નથી. પરંતુ કલ્યાજ રૂપ छे. भात से छे. एव' जाव अणंतपएसिए खघे' १४ प्रमाणे यावत् અનંત પ્રદેશવાળ સ્કધ પણ કલ્યાજ રૂપ જ છે. 'परमाणपोग्गलाणं भंते ! दबट्टयाए कड़जुम्मा पुच्छा' वे श्रीगोतमस्वामी બહુપણને આશ્રય કરીને વિનયપૂર્વક પ્રભુશ્રીને એવું પૂછે છે કે-હે કૃપાળ ભગવદ્ સઘળા પરમાણુ યુદ્ગલ દ્રવ્યપણાથી શું કૃતયુગ્મ રૂપ છે ? અથવા જ રૂપ છે? અથવા દ્વાપરયુગ્મ રૂપ છે ? અથવા કલ્યાજ રૂપ છે? આ પ્રશ્નના
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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