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________________ भगवती सूत्रे ટટ तहेव चत्तव्त्रया निरवसेसा' एतेषां खल्ल यथा परमाणु बुलादीनाम् तथैव वक्तव्यता निरवशेषा । यथा- परमाणुपुत्रको द्विपदेशिक स्कन्धाऽपेक्षयाऽधिको भवति, तथा-एकगुणकालकः स्कन्धो द्विगुणकालस्कन्धाऽपेक्षयाऽधिको भवतीत्यादिकं परमाणुपुला दिपकरणचदेव वोध्यम् । एवं सव्वेसि यन-गंध-रसा' एवं सर्वेष वर्ण- गन्ध - रसानां परमाणुपुत्रलादिप्रकरणवदेव अल्पवस्वं वक्तव्यमिति । 'एएसि णं भते । एतेपां खलु भदन्त ! ' एगगुणकक्खडाणं दुगुणकक्खडाण य पोग्लाणं कयरे करेहिंतो दव्वट्टयाए जाव विसेसाहिया वा' एकगुणकर्कशानां द्विगुणकर्कशानां च पुद्गलानां द्रव्यार्थतया कतरे कतरेभ्यो यावद् - विशेषाधिका वा प्रभुश्री उनसे कहते हैं- 'एएसि णं जहा परमाणु पोग्गलाईणं तहेव वत्त या निरवसेसा' हे गौतम ! जिस प्रकार से एक परमाणु पुद्गल हिप्रदेशिक स्कन्ध की अपेक्षा अधिक कहा गया है उसी प्रकार से एकगुणकाल स्कन्ध द्विगुणकालक स्कन्ध की अपेक्षा से अधिक हैं। इत्यादि सर्व कथन परमाणुपुद्दल आदि के प्रकरण के जैसा यहां जानना चाहिये | 'एवं सव्वेसिं वन्न, गंध, रसाणं' इसी प्रकार से समस्त वर्णों का समस्त गंधों का और समस्त रसों का अल्पबहुत्व परमाणुपुद्गल आदि के प्रकरण के जैसा ही जानना चाहिये । अब गौतमस्वामी प्रभुश्री से ऐसा पूछते हैं - 'एएसि णं भंते ! एगगुणकक्खडा णं दुगुणकक्खडाण य पोग्गलाणं करे करेहिंतो दव्वहुवाए जाव विसेसाहिया वा' एकगुणकर्कश और द्विगुणकर्कश युक्त पुहलों में द्रव्यरूप से कौन पुद्गल किन पुगलों से अल्प हैं ? कौन किन से बहुत हैं ? कौन किनके बराअनुश्री तेभने छे है- 'एएसि णं जहा परमाणुपोग्बाईणं तद्देव' वत्तंव्त्रया निरवसेसा' हे गौतम ने प्रभा परमाणु युगल मे अहेशवाजा २४६ કરતાં વધારે કહેલ છે, એજ પ્રમાણે એકગુણુ કાળા વર્ણવાળા સ્કંધ એ ગુણ કાળા' વધુ વાંળા સ્કંધ કરતાં અધિક છે, વિગેરે પ્રકારનું સર્વ કથન પરમાણુ પુદ્ગલના પ્રકરણ પ્રમાણે અહીયાં યાવત્ અસંખ્યાત ગુણુ કાળા વધુ વાળા २४६ सुधीतुं संघ स्थन समभवु 'एव' सव्वेसि वन्न, गंध, रसाणं' J પ્રમાણે સઘળા વર્ણોનું, સઘળા ગધાનું અને સઘળા રસેતુ' અલ્પ મહુપણું' પરમાણુ પુદ્ગલના પ્રકરણ પ્રમાણે સમજવું જોઈએ, 1 डचे श्री गौतमस्वामी अनुश्रीने मे पूछे छे - 'एएसि णं भंते । एगगुणकक्खडाणं दुगुणकक्खड़ाण य पोग्गलाणं कयरे कयरेहिं तो दव्वट्टयाए जाव विखेसाहिया वा' अशाने मे यु ४४शवाजा युगसासां द्रव्ययायांथी કયા પુદ્ગલા કયા પુંગલા કરતાં અલ્પ-થાડા છે? કયા પુદ્ગલા કયા પુદ્ગલેા કરતાં
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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