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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.४ ०२ जीवादि २६ द्वाराणां कृतयुग्मादित्वम् ७५७ जुम्मा' नो द्वापरयुग्माः 'नो कलियोगा' नो कल्योजाः । 'विहाणादेसेण' विधा. नादेशेन -भेइमकारेण एकैविवक्ष पेयः 'नो कडजुम्मा' नो कृतयुग्मरूमाः 'नो. तेओगा' नो योजाः 'कलिओगा' कल्योजा एव भवन्ति एकरूपत्वात् तत्स्वरूप स्येति । 'नेरइया णं भंते ! दमट्ठयाए पुच्छा ? नैरयिकाः खलु भान्त ! द्रव्यार्थतया पृच्छा ? हे भदन्त । नैरयिका द्रव्यार्थितया किं कृतयुग्माः व्योजाः द्वापरयुग्मा: कल्योजावेति प्रश्नः ? भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'ओघा. देसेण सिय कडजुम्मा' ओघादेशेन सर्वे एव गण्यमानाः, स्यात्-कदाचित् कृत न्यतः कृतयुग्मरूप ही हैं । वे 'नो तेओगा' योजरूप नहीं हैं 'नो दावरजुम्मा' द्वापरयुग्मरूप नहीं है और 'नो कलिओगे' कल्योजरूप भी नहीं हैं। ___ 'विहाणादेसे गं' तथा एक एक जीव की विवक्षा से अनेक जीव 'नो कडजुम्मा' कृतयुग्मरूप नहीं होते हैं क्योंकि चारसे अपहार करने पर शेष चार नहीं रहते हैं। 'नो तेओगा' व्योजरूप नहीं होते है क्यों कि चारके अपहार से शेष तीन नहीं रहते है। 'नो दावरजुम्मा' द्वापर यम्मरूप नहीं होते हैं क्यों कि चार से अपहार करनेपर दो शेष नही रहते हैं। किन्तु 'कलिओगा' वे कल्पोजरूप ही होते हैं। क्योंकि कल्योज का स्वरूप चार से अपहार करने पर शेष एक रहने से एक रूप माना गया है। 'नेरइयाणं भंते ! दवयाए पुच्छा । हे भदन्त ! नैरयिक जीव क्या द्रव्यार्थ से-द्रव्यरूप से-कृतयुग्मरूप होते हैं ? अथवा योजरूप होते हैं ? अथवा द्वापरयुग्मरूप होते हैं ? अथवा फल्योजरूप होते हैं? इसके उत्तर में प्रभु श्री उनसे कहते हैं'गोयमा! ओघादेसेण सिय कडजुम्मा' हे गौतम! सामान्य से सब छे. 'नो तेओगा' यो४ ३५ नयी 'नो दावरजुम्मा' ६५२युम ३५ नथी. भने 'नो कलिओगा' त्या४ ३५ ५ नथी. 'विहाणादेसेणं' तथालनी विवक्षाथी सनः । 'नो कड जुम्मा' कृतयुग्म ३५ नथी. १२९१ सारथी अपहार ४२वामां आवे तो यार शेष रहेता नथी. 'नो तेओगा' यानर ३५ नथी. भ-यारथी भण्डार ३२तात्रय शष २७ता नथी 'नो दावरजुम्मा' द्वा५२. युगभ३५ नथी, भो यारना ५५४२ २ता मे शेष २ता नथी. ५२ 'कलिओगा' ' ४क्ष्यो३५ ४ डाय छे भई ४क्ष्या १५३५ ४३५ मानेर छे. 'नेर इयाणं भंते! दवयाए पुच्छा' 8 लगवन् नर४ि । शुद्रव्याथ पाथी કૃતયુગ્મ રૂપ હોય છે ? અથવા વ્યાજ રૂપ હોય છે ? અથવા દ્વાપરયુગ્મ રૂપ હોય છે? અથવા કોજ રૂપ હોય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમ स्वाभान ४ डे-'गोयमा ! ओघादेसेण सिय कडजुम्मा' गीतम ! सामा
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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