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________________ Hi ६८९ प्रमेन्द्रका टीका श०२५ उ. ३ सू०५ लोकस्य परिमाणनिरूपणम् " अलो गागास सेठीओ० पुच्छा ? प्राचीपतीच्यायताः खलु भदन्त ! अलोकाकाश श्रेणयः प्रदेशरूपेण किं संख्याताः - असंख्याताः - अनन्वावे व प्रश्न ? भगवा ' नाह - 'गोमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! नो संखेज्जाओ-नो असंखेज्जाओ -अणंताभी' नो संख्याताः, नो असंख्याताः, अनन्ता एव ताः श्रेणयो भवन्तीति । ' एवं दाहिणुत्तराययाओ वि' एवं दक्षिणोत्तरायता अपि दक्षिणदिशि - उत्तरस्यां - चाऽऽयताः - लम्वायमाना अपि - अलोकाकाशश्रेणयो नो संख्याताः - नो असं ख्याताः किंतु जनता एव भवन्ति इति । 'उड्डूमहायताओ पुच्छा ? ऊर्ध्वाध आयताः पृच्छा ? दे भवन्त ! ऊन आयता अठोकाकाशश्रेणयः किं संख्यादाः-असंख्यागः - अनन्तावेति । प्रश्नः ? भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम! 'सिग सखेज्जाओ - मिय असंखेज्जाओ - सिय अनंताओं' स्यात्-संख्यातास्ता ऊर्ध्वाऽथ आयताः - अलोका काभ्रेणयः स्याद् - संख्याताः स्याद् - असंख्याताः-स्वादनन्ताश्च ता ऊर्ध्वाध आयताः अलोकाकाशश्रेणय इति ॥ ०५ ॥ णं भंते !' इसे गौतमस्वामी ने प्रभुश्री से ऐसा पूछा है - है भदन्त ! पूर्व से पश्चिम तक लम्बी अलोकाकाश श्रेणीयां प्रदेशरूप से क्या संख्यात हैं अथवा असंख्यात हैं ? अथवा अनन्त हैं ? इसके उत्तर में प्रभु श्री कहते हैं - 'गोयमा ! नो संखेज्जाओ तो असंखेज्जाओ' हे गौतम! वे संख्यात नहीं है असंख्यात नहीं हैं । किन्तु 'अनंताओ' अनन्त ही हैं । 'एवं दाहि णुत्तराययाओ वि' इसी प्रकार से वे दक्षिणदिशा में और उत्तरदिशा में लम्बी श्रेणियां अनन्त हैं संख्यात अथवा असंख्यात नहीं हैं 'उड्ड महाघताओ पुच्छा' हे भदन्त ! उर्ध्व और अधोदिशा में जो अलोकाकाश को श्रेणियां हैं वे प्रदेश रूप से संख्यात है ? अथवा असंख्यात हैं ? अथवा अनन्त हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं - 'गोमा !' हे गौतम! 'पाई डीणाययाओ णमंते ! या सूत्रथी श्री गौतमस्वाभी अनुश्रीने मे पूछ છે કે-હે ભગવત્ પૂર્વથી પશ્ચિમ સુધી લાંખી અલેાકાકાશની શ્રેણીયા પ્રદેશપ ણાથી શું સખ્યાત છે? અથવા અપ્રખ્યાત છે? કે અનત છે? આ પ્રશ્નના उत्तरसां प्रभुश्री छे ! - 'गोयमा ! नो स खेज्जाओ, नो असंखेज्जाओ' ते सभ्यात नथी तेम असण्यात या नथी. परंतु 'अणंताओ' अनंत हे 'एव ं दाहिणुत्तराययाभो वि' मे रीते दृक्षिषु दिशामा भने उत्तर दिशाभां मावेसी सांमी श्रेया अनंत संख्यात असभ्यात नथी 'उड्ढमहा यताओ पुच्छा' हे भगवन् भने सधी दिशामां अशनी के શ્રેણિયા છે. તે પ્રદેશપણાથી સખ્યાત છે? અથવા અસંખ્યાત છે ? કે અનંત छे? या प्रश्नना उत्तरमा अनुश्री - 'गोयमा ।' है गौतम ! 'सिय सखे डे भ० ८७
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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