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________________ shewद्रका टीका श०२५ उ. ३ सू०५ लोकस्य परिमाणनिरूपणम् ६८७ नो अनन्ता कदाचित् संख्याताः कदाचिद् असंख्याताः भवन्ति किन्तु अनन्ता न भवन्तीति । 'उडूनहाया नो संखेज्जाओ असंखेज्जाओ नो अनंतयो' कयधि आयता अपि श्रेणयो नो संख्येयाः किन्तु असंख्याताः, तथा-नो 'अनाः । यत स्वासां श्रेणीनामूर्ध्वलोकान्तादधोलोकान्ते, अधोलोकान्तादूर्ध्वलोकान्ते प्रतिघातः अतस्ताः श्रेणयोऽसंख्यातमदेशा एवेति । या अपि अधोलोककोणतो ब्रह्मलोकतिर्यगू मध्यमान्ताद्वा उत्तिष्ठन्ते ता अपि -न संख्यातप्रदेशा लभ्यन्ते । अस्मादेव सूत्रवचनादिति । अथालोकाकाशश्रेणिविषये प्राह- 'अलोमागास सेढीओ णं भंते' अलोकाकाशश्रेणयः खलु भदन्त ! 'पएसट्टयाए पुच्छा' ? प्रदेशार्थतया पृच्छा : हे भदन्त | अलोकाकाशश्रेणयः किं पूर्व पश्चिम आयत और दक्षिण उत्तर आयतश्रेणियाँ भी लोकाकाश श्रेणियों की तरह कदाचित् संख्यात कदाचित् असंख्यात होती है परन्तु अनन्त नहीं होती है। तथा ऊर्ध्व अधः आयत श्रेणियां न संख्यात होती हैं और न अनन्त होनी हैं किन्तु असंख्यात ही होती हैं । इसी बातको सूत्रकार 'उडूमहापयाओ नो संखेज्जाओ, असंखेज्जाओ, नो अणंताओ' इस सूत्रद्वारा स्पष्ट कर रहे हैं ऊर्ध्वलोकान्त से लेकर अधोलोकान्त तक और अधोलोकान्त से ऊर्ध्वलोकान्त तक में उन श्रेणियों का प्रतिघात नहीं है । इसलिये ये श्रेणियां असंख्यात प्रदेशों वाली ही हैं । तथा जो श्रेणियां अधोलोक के कोने से अथवा ब्रह्मलोक के तिर्यग्मध्यप्रान्त से निकली हैं वे भी इसी सूत्र के कथनानुसार संख्यातप्रदेशों वाली नहीं हैं। अब श्री गौतमस्वामी प्रभु श्री से ऐसा पूछते हैं- 'अलोगागाससेढीओ of भंते ! पएसघाए पुच्छा' हे भदन्त ! अलोकाकाश की લેાકાકાશ શ્રેણિયેાની જેમ કેાઈવાર સ ંખ્યાત અને કેાઈવાર અસખ્યાત હાય છે પણ અનંત હૈાતી નથી. તથા ઉપર નીચે આયત-લાંખી શ્રે]ીય સખ્યાત હૈતી નથી તેમ અનન્ત પણ હતી નથી પરંતુ અસ ખ્યાત જ ઢાય છે. सज्जाओ अस खेज्जाओ नो मेन वातने सूत्रारे 'उड्ढमहाययाओ नो બળતાો' આ સૂત્ર દ્વારા સ્પષ્ટ કરેલ છે. ઉપરના લેાકાન્તથી ઉઇને નીચેના લેાકાન્ત સુધી અને નીચેના લેાકાન્તથી ઉપરના લેાકાન્ત સુધીમાં શ્રેશીયાના પ્રતિઘાત થાય છે. તેથી થ્રેડ્ડીયા અસખ્યાત પ્રદેશોવાળી જ છે તથા જે શ્રેણીયા નીચેના લેાકના ખૂશુામાથી અથવા બ્રહ્મલેાકના તિર્યંચ મધ્ય પ્રાંતથી નીકળેલ છે તે પણ આજ સૂત્રના કથન પ્રમાણે સખ્યાત પ્રદેશોવાળી નથી, वे गौतमस्वामी प्रभुने मे पूछे छे - 'अलोगागास सेढीओ ण भसे ! पपसट्ट्याए पुच्छा' हे भगवन् अहोभारानी श्रेषीया अहेशानी अपेक्षाथी शु
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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