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________________ ६७८ भगवतीस्त्रे ऊर्ध्वाध आयताः पृच्छा ? गौतम । स्यात् संख्येयाः स्याद् असंख्येयाः स्थात् अनन्ताः ॥०५॥ टीका-'सेढीओणं भंते !' श्रेणयः खलु भदन्त ! यद्यपि-श्रेणीशब्देन पक्तिमात्रं कथ्यते तथापि-अत्र प्रकरणवलात् आकाशपदेशश्रेणय-एव गृहीतव्याः , आकाशपदेश श्रेणीनामेव प्रक्रान्तत्वात् तत्र श्रेणयः अविवक्षितलोकालोकभेदत्वेन सामान्याः १, तथा-वा एव श्रेणयः पूर्वापरायताः२ दक्षिणोत्तरायताः३, उर्धाऽध आयताः ४। एवं लोकसम्बन्धिन्योऽलोकसम्बन्धिन्यश्च ताः श्रेणयो भवन्ति । ताः द्रव्यादिक की अपेक्षा से संस्थान परिमाण के अधिकार को लेकर अब सूत्रकार संस्थान विशेषित लोक का भी पूर्वोक्त रूप से ही परि"माण निरूपण करने के लिये सूत्र का कथन करते हैं-'सेढीओ णं भंते ! व्वयाए किं संखेज्जाओ' इत्यादि सूत्र ॥५॥ टीकार्थ-यहां गौतम स्वामीने प्रभु से ऐसा पूछा है-'से ढीभो णं भंते ! दवट्टयाए कि संखेज्जाओ, असंखेज्जाओ, अणताओ' हे भदन्त! द्रव्य की अपेक्षा से श्रेणियां क्या संख्यात हैं ? अथवा असंख्यात हैं ? अथवा अनन्त हैं ? यद्यपि श्रेणी शब्द से पङ्क्तिमात्र का कथन होता है अर्थात् श्रेणी शब्द का अर्थ पङ्क्तिमात्र है फिर भी यहां पर प्रकरण के वश से 'आकाश प्रदेश पङ्क्तियां श्रेणी शब्द से गृहीत हुई हैं। इस प्रकार लोक और अलोक के भेद की विवक्षा किये बिना ही वे यहां सामान्य रूप. ग्रहीत होती हैं । ये श्रेणियां पूर्व से पश्चिम तक लम्बी हैं, दक्षिण से उत्तर तक लम्बी हैं और उर्व से अधोभाग तक लम्बी हैं। इस प्रकार की ये श्रेणियां लोक में भी हैं और अलोक में भी हैं। इस सय अभिप्रायको દ્રવ્ય વિગેરેની અપેક્ષાથી સંસ્થાન પરિમાણુના અધિકારથી હવે સૂત્રકાર સંસ્થાન વિશેષ લેકનું પૂર્વોક્ત પ્રકારથી જ પરિમાણ નિરૂપણ કરવા માટે सूत्रनुं ४थन ४२ छे 'सेढीओ ण भंते ! दवट्टयाए कि संखेज्जाओ' त्याहि. ट -हवे गीतभस्वामी प्रसुश्रीन सपूछे छे है-'सेढीओ णं भवे ! दव्वदयाए कि संखेजाओ असखेजाओ' है भगवन् द्रव्यनी अपेक्षाथी श्रेणीया સંખ્યાત છે? કે અસંખ્યાત છે ? અથવા અનંત છે? જોકે શ્રેણી શખથી પંક્તિનું ગ્રહણ-કથન થાય છે, અર્થાત શ્રેણી શબ્દનો અર્થ પંક્તિ માત્ર છે, તે પણ અહીંયાં પ્રકરણ વશાત આકાશ પ્રદેશ પંક્તિઓ શ્રેણી શબ્દથી ગ્રહણ થઈ છે. આ રીતે લેક અને અલકના ભેદની વિવક્ષા કર્યા વગર જ તેઓ અહીંયાં સામાન્ય પણાથી ગ્રહણ થાય છે, આ પૂર્વથી પશ્ચિમ સુધી લાંબી હોય છે. દક્ષિણથી ઉત્તર સુધી લાંબી છે, અને ઉપરથી નીચે
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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