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________________ T refer टीका श०२५ उ. ३ सू०४ द्रव्यार्थत्वेत प्रदेशनिरूपणम् 'सिय कडजुम्मसमं जाव कलिभोगसमंयहि' स्याद - कृतयुग्मसमयस्थितिकं यावत्- कल्यो जसमयस्थितिकम् । अत्र यावत्पदेन स्यात् ज्योजसमयस्थितिकै स्पात् द्वापमयुग्मसमयस्थितिक मित्यनयोः संग्रहः । ' एवं जाव आयए' एवम् - परिमण्डलसंस्थानवदेव वृत्तसंस्थानादारभ्याऽऽयतान्वसंस्थानपर्यन्तं स्यात् कृतयुग्मसमय स्थिति यावत् स्यात् कल्पोजसमय स्थितिकमिति । अयं भावः - परिमण्डलादि संस्थानेन परिणतस्कन्धानां कृतयुग्मादि सर्वसमयस्थितिकत्वं भवतीति । 'परिमंडळानं भंते ! संठाणा' परिमण्डलानि खल भदन्त ! संस्थानानि कि, कडजुम्मसमयडिया पुच्छा' किं कृतयुग्मसमयस्थितिकानि इति पृच्छा । हे होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु श्री कहते हैं 'गोयमा । सिय कडजुम्म समयहिए जाव कलिओगसमयहिए' हे गौतम! परिमंडल संस्थान कदाचित् कृतयुग्म समय की स्थितिवाला है और यावत् वह कदाचित् कल्पोज समय की स्थिति वाला भी है। यहां यावत्पद से 'स्यात् पोज समयस्थितिकं स्यात् द्वापरयुग्म समयस्थितिकम्' इस पाठ का संग्रह हुआ है । ' एवं जाव आयए' परिमंडल संस्थान के जैसे ही वृत्तसंस्थान से लेकर आयत संस्थान तक सब संस्थान कृतयुग्म समय की स्थितिवाले भी हैं । यावत् कल्पोज समय की स्थितिवाले भी हैं। तात्पर्य यही है कि परिमंडल आदि संस्थान से परिणत स्कन्धों में कृतयुग्म आदि सर्व समय की स्थिति रूपता है । 'परिमंडलाणं भंते! संठाणा' हे भदन्त । समस्त परिमंडल संस्थान 'किं कडजुम्मसमयहिया पुच्छा' क्या कृतयुग्म समय की स्थिति वाले छे? या प्रश्नना उत्तरमां अनुश्री डे - 'गोयमा' खिय कडजुम्मसमय दिइए जाव कलिभोगसमयट्ठिइए' डे गौतम परिभउस संस्थान अध वार द्रुत युग्भ संभयनी स्थिति वाणु होय हे साडींयां यावत् यथा 'स्यात् ज्योजसमय स्थितिकं स्यात् द्वापरयुग्मसमयस्थितिकम्' 'ते वा समयनी સ્થિતિવ છુ. હાય છે અને કાઈ વાર દ્વાપરયુગ્મ સમયની સ્થિતિવાળું હેાય છે या पाउना साथ थये। छे. 'एव जाव आयए' परिभउस संस्थानना उधन પ્રમણે વૃત્ત સસ્થાનથી લઈને આયત સ ંસ્થાન સુધીના સઘળા સ્થાને કૃત યાવર્તી કલ્યાજ સમયની સ્થિતિવાળા પણ યુગ્મ સમયની સ્થિતિ વાળા છે છે. કહેવાનુ તાત્પ એ છે કે પરિમડલ વિગેરે સસ્થાનેાથી પરિણત થયેલા સ્કંધમાં મૃતયુગ્મ વિગેરે તમામ સમયની સ્થિતિ રૂપતા છે. 'परिमंडळा ण भंते! संठाणा' हे भगवन् सघणा परिभउस संस्थानो किं कडजुम्मसमयद्दिश्या पुच्छा' शु' हृतयुग्भ सभयनी स्थितिवाणा हे ? अथवा
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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