SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 576
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -५५८ भगवतीस्त्र टीका-'कइविहा णं भंते ! दव्या पन्नत्ता' कविविधानि कतिप्रकारकाणि खल भदन्त ! द्रव्याणि प्रज्ञप्लानि-कयितानीति द्रव्यस्वरूपसंख्याविषयका प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'दुविदा दव्या पत्नत्ता' द्विविधानि द्रव्याणि प्रज्ञप्तानि, द्वैविध्यमेव दर्शयति-तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा-'जीवदया य अजीवदया य' जीवद्रव्याणि च अनीवद्रव्याणि च 'अजीव दव्या णं भंते ! कइविहा पन्नत्ता'- अजीवद्रव्याणि खलु भदन्त ! कतिविधानि मज्ञाप्तानीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! पचीसवें शतक का दूसरे उद्देशे का प्रारंभ प्रथम उद्देशे में जीवद्रव्यों के लेश्यादिक का परिमाण कहा। अब इस द्वितीय उद्देशक में द्रव्य प्रकारों के परिमाण आदि का विचार किया जाता है। इसी सम्बन्ध से आये हुवे इस द्वितीय प्रदेशक का घह-'काविहा णं भंते' इत्यादि प्रथम सूत्र है टीकार्थ-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-'काविहा णं भंते ! दन्या पन्नत्ता' हे भदन्त ! द्रव्य कितने प्रकार के कहे गये हैं ? इस प्रकार का यह प्रश्न द्रव्यके स्वरूप संख्या विषयक है । इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! 'दुधिहा या पन्नत्ता' द्रव्य दो प्रकार के कहे गये हैं 'तं जहा' वे ये हैं-'जीवव्वा य अजीवव्वा य' एक जीव द्रव्य और दूसरा अजीव द्रव्य अब गौतम प्रभु ले ऐसा पूछते हैं-'अजीवदव्याणं भंते ! काविहा पन्नत्ता' हे भदन्त ! अजीवद्रव्य कितने प्रकारके પચ્ચીસમા શતકના બીજા ઉદ્દેશાને પ્રારંભ– તે પહેલા ઉદ્દેશામાં જીવ દ્રવ્યેની લેશ્યા વિગેરેનું પરિમાણ કહેવામાં આવ્યું છે. હવે આ બીજા ઉદેશામાં દ્રવ્ય પ્રકારોના પરિમાણ વિગેરેને 'વિચાર કરવામાં આવે છે. આ સંબંધથી આવેલા આ બીજા ઉદ્દશાનું “ विहा णं भंते ! त्यादिमा पहे सूत्र छ., टी -भा सूत्रथा गीतभाभी ने मे पूछे छे है-'कइविहाणे . भंते ! व्या पण्णत्ता' 8 लगवन् द्रव्य ८ २ना वाम! मा०या छे । આ પ્રમાણેને આ પ્રશ્ન સ્વરૂપ સંખ્યાના સંબંધમાં છે. આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં , प्रभु ४ छे'-'गोयमा' हे गीतम! 'दुविहा दवा पन्नत्ता' द्र०५ मे २नु हे छ. 'त जहा' ! प्रमाणे छे.-'जीवव्वा य अजीवदव्वा य ४ જીવ દ્રવ્ય અને બીજુ અજીવ દ્રવ્ય. शथी गीतभवामी प्रभुने मे पछे छ है-'अजीवदव्वा गं भते ! कइविहा पन्नत्ता' 8 लापन म०१ द्रव्य 21 प्रा२र्नु ४९ छे १ भाना
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy