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________________ प्रमेयंचन्द्रिका ठीका श०२५ उ. १ सू०५ प्रकारान्तरेण योग निरूपणम् ६६३ तोति, 'तस्स चेत्र उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे८' तस्यैव च आहारकशरीरस्यैवे उत्कृष्टो योग एतस्य जघन्ययोगापेक्षयाऽसंख्येयगुणोऽधिको भवतीति । 'औराबियमीसगस्स वेन्दियमीसगस्स य' औदारिकमिश्रकस्य वैक्रियमिश्रकस्य च 'एएसि णं उकोसए जोए दोण्ड वि तुल्ले असंखेज्जगुणे' एतयोः खलु औदारि कमिश्रकवैक्रियमिश्रशरीरयोः उत्कृष्टो योगः द्वयोरपि तुल्योऽसंख्येयगुणो पूर्व योगापेक्षया औदारिकमिश्रस्य वैक्रियमिश्रस्य च द्वयोरप्युत्कृष्टो योगोऽसंख्यांत गुणश्वेन तुल्यः ९-१० 'असच्चामो समणजोगस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुंणें ११ ' असत्यामृषामनोयोगस्य जघन्यो योगोऽसंख्येयगुणोऽधिको भवतीति । 'आहान रंगसरीरस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे १२' आहारकशरीरस्य जघन्यो योगो संख्येयगुणोऽधिको भवति पूर्वयोगापेक्षया । 'तिविहस्स मणोजोगस्स चउत्रि जोए असंखेज्जगुणे ७' इसकी अपेक्षा आहारक मिश्र का जघन्यं योग असंख्यातगुणा है । 'तस्स वेब उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे ८' इसकी भपेक्षा आहारक शरीर को उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है । 'ओरालियमीसगस्स उच्यमी सगस्स य एएसि णं उक्कोसए जोए दोण्ह वि तुल् ! असंखेज्जगुणे' औदारिक मिश्र का और वैक्रिय मिश्र का अर्थात् इन दोनों शरीरों का जो उत्कृष्ट योग है वह तुल्य-समान है अर्थात् पूर्वः योग की अपेक्षा इन दोनों का योग असंख्यातगुण को लेकर समान है |९-१०। 'असच्चामोसणजोगस्ल जहनए जोए असंखेलगुणे १११इसकी अपेक्षा असत्यामृषा मनोयोग का जघन्य योग असंख्यात गुणा है । ' आहारगसरीरस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे' इसकी अपेक्षा, भाहारक शरीर का जघन्ध योग असंख्यातगुणा अधिक है । 'तिवि ४२तां माहार४ भिश्रनो धन्ययोग राज्यात छे. 'तर देव उक्काखए ज'ए असंखेज गुणे' ८, तेना रतां महा२४ शरीरमा उत्कृष्टयोय असं च्यात गये। छे. 'ओरालिय मीसगम्स वेउब्वियमी संगस्स य एएसि ण उक्कोसर जोए दण्ड वि तुल्ले असंखेज्जगुणे' मोहारि मिश्रनो भने वैठिय मिश्रा अर्थात् शे બન્ને શરીરાના જે ઉત્કૃષ્ટ ચેગ છે, તે પહેલાના ચૈાગ કરતાં અસખ્યાતगया है, अर्थात्, ते परस्परमा सरणे। ४. ८-१० ' ' असच्चामोसमणजोग जहन्नए जोए असखज्जगुणे' ११' तेना ४२ता असत्या भूषा भनायेगनो भधन्ययोग असभ्याता हे, 'आहारगसरीरस्स जहन्नए जोए असंखे જ્ઞનુળે' તેના કરતાં માહારક શરીરના જઘન્યયેાગ અસ ખ્યાત ગા અધિક ४. 'तिविहस्स मणोजोगस्स चउव्विहस्स वइजोगस्स' यु अारनो मनोयोग भने भ० ७०
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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