SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 569
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मैचन्द्रिका टीका श०९५ उ.१ ०५ प्रकारान्तरेण योगनिरूपणम् ५५१ पूर्वोक्तयोगस्यैव अल्पबहुत्वं प्रकारान्तरेण वक्ति 'एयस्स णं भंते' इत्यादि । 'एयस्स णं भंते ।' एतस्य - पूर्वमतिपादितस्य योगस्य खलु भदन्त ! 'पन्नरसविहस्स' पञ्चदशविधस्य पञ्चदशमकारकस्येत्यर्थः योगस्य 'जहन्तुको सगस्स' जघ 'करे करे हिंतो जात्र विसेसादिया वा' कतरे कतरेभ्यो यावद्विशेपाधिका वा अत्र यावत्पदेन अल्पा वा बहुका वा तुल्या वेत्येतेषां संग्रहः, तथाच - हे भदन्त ! जघन्यस्योत्कृष्टस्य च योगस्य कस्यापेक्षया काल्पत्वं बहुत्वं तुल्य• एवं विशेषाधिकत्वं वा भवतीति नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सत्थोवे इम्मगसरीररस जहन्नए जोए १ सर्वस्तोकः कार्मणशरीरस्य जघन्यो योगः कार्मणशरीरस्य जघन्यो योग: सर्वापेक्षया अल्पीयानित्यर्थः 'ओरालियमtarta जद्दन्नए जोए असंखेज्जगुणे२' औदारिक मिश्रशरीरस्य जघन्यो योगोऽसंख्येयगुगोऽधिको भवति कार्मणशरीरगतजघन्ययोगापेक्षया अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'एक्स्ल णं भंते !०' हे -भदन्त ! इस पूर्व प्रतिपादित १५ पन्द्रह प्रकार के योग में से जो कि अनेक जीवों के आश्रय से जघन्य और उत्कृष्ट कहा गया है कौन योग किस योग की अपेक्षा से यावत् विशेषाधिक है ? यहां यावत्पद से 'अल्पा वा बहुका वा तुल्या वा' इन पदों का संग्रह हुआ है। तथा च-इन १५ पन्द्रह प्रकार के योगों में से कौन योग किनकी अपेक्षा अल्प हैं ? कौन योग किनसे बहुत हैं ? कौन योग फिनके तुल्य है ? और कौन योग faशेषाधिक है ? इन प्रश्नों के उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं - 'गोयमा' गौतम ! 'eoaratचे वम्मगसरीरस्स जहन्नए जोए' सब से कम कार्मण शरीर का जघन्य योग है । 'ओरालियमीसमस्स जहन्नए जीए हवे गीतभस्वामी प्रभुने मे पूछे छे - ' एयरसणं भवे !' हे भगवन् આ પહેલાં કહેલ ૧૫ પંદર પ્રકરના ચૈાગમાંથી કે જે અનેક જીવેના આશ્રયથી જયન્ય અને ઉત્કૃષ્ટક હ્યો છે, તે તે કયો યાગ કયા ચૈાગ કરતાં યાત્ વિશેષાધિક छे. मडियां यावत्यदृथी 'अल्पा वा. बहुका वा, तुल्या वा' मा होने संग्रह थये। છે. તથા આ પંદર પ્રકારના ચેગા પૈકી કા ચેાગકાનાથી અલ્પ છે ? કયેા ચેાગ કાનાથી અધિક છે ? કયા ચેાગ કાની તુલ્ય છે ? અને કયો યાગ વિશેષાધિક છે ? આ प्रश्नना उत्तरमां प्रभु गौतम स्वामीने हे छे है - 'गोयमा ! हे गीतम ! 'सव्त्रत्थोवे कम्मगसरीरस्स जद्दन्नए जोए' मधाथी उभ अभय शरीरने। धन्य योग छे. 'ओरालियम सगस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे' तेना उरतां भौहारि मिश्र शरीरन।' धन्य योग असण्यात गये। छे 'वेउव्वियमीसगस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे' तेना इरतां वैष्ठिय भिश्रनो धन्य योग असभ्यात गये। छे, ओरा
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy