SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 565
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.१ सू०५ प्रकारान्तरेण योगनिरूपणम् ५४७ भवतीति। 'एव जाव वे मागिया' एव'नारकरदेव यात्रन वैमानिकपर्यतं समत्व विषमस्वहीनत्वाधिकत्वानि एकापेक्षया इतरेषु ज्ञातव्यानि ॥१०४.। '. योगाधिकारादेवेदम परमाह-'कइविहे णं भंते' इत्यादि। ... मूलम्-काविहे णं भंते ! जोए पन्नते ? गोयमा! पन्नरसविहे जोए पन्नत्ते, तं जहा-सच्चमणजोए?, मोसमणजोए२, सञ्चामोसभणजोए३, असञ्चामोसमणजोए ४, सच्चवइजोए ५, मोसवइजोए ६, सच्चामोलवइजोए ७, असञ्चामोलवइजोए ८, ओरालियसरीरकायजोए ९, ओरालियमीसासरीरकायजोए १०, वेउव्वियसरीरकायजोए ११, वेउव्वियमीसासरीरकायजोए १२, आहारगसरीरकायजोए १३, आहारगसरीरमीसासरीरकायजोए१४, कम्मासरीरकायजोए १५। एयस्स णं भंते ! पन्नरस. विहस्स जहन्नुकोसगल्ल कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया वा? गोयमा ! सम्वत्थोवे । कम्मगसरीरस्त जहन्नए जोए१, ओरालियमीसगस्ल जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे२, वेउव्वियमीसगस्स यावत्पद से हे गौतम! 'एवमुच्यते स्थात् समयोगी' इस पाठ का ग्रहण हुआ है। 'एवं जाव वेमाणियाणं' नारक के जैसे ही थावत् वैमानिक पर्यन्त के शेष २३ दण्डकों में समत्व की विषमत्व की हीनत्वकी और अधिकत्व की व्याख्या करनी चाहिये। तात्पर्य यही है कि इस प्रकार से वैमानिक देवों तक में एक की अपेक्षा में दूसरा सम, विषम हीन और 'अधिक योगी होने का काथन जानना चाहिये ॥४॥ महीयां यावत्५.थी गीत ! 'एवमुन .ते स्यात् समयोगी' मा ५४ अड ,' राय छे. 'एवं जात्र वेमाणियाण' ना२४ना धन तां यारत् मानिस || પર્યન્તના બાકીના ૨૩ તેવીસ દંડકામાં સમાપણાની અને વિષમપણાની અને , અધિકપણાની વ્યાખ્યા કરવી જોઈએ તાત્પર્ય એ છે કે-એજ રીતે વૈમાનિક , દેવ સુધીમાં એકની અપેક્ષાથી સમ, વિમ, અને તેને તુલ્ય વેગવાળા डावातु थन ज नसे. ॥सू० ४॥
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy