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________________ भगवतीसत्रे ५२४ भूत् परिषत् नगरान्निस्सृता धर्मोपदेशो भगवता कृतः परिषत् प्रतिगता । तद्नु त्रिविधया पर्युपासनया पर्युपासीनः प्राञ्जलिपुटो गौतम इत्यादीनां पदानां ग्रहणं भवति इति । किमवादीत् ! तत्राह - 'कह णं' इत्यादि । ' कइ णं भंते ! लेस्साओ पण्णत्ताओ' कति खल्ल भदन्त । लेश्याः प्रज्ञयाः भगवानाह - 'गोमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'छल्ले साओ पन्नत्ताओ' पड्लेश्याः मज्ञप्तः प्रकारभेदमेव दर्शयति- 'तं जहा ' इत्यादि । 'तं जहा ' तद्यथा - 'कण्डलेस्सा जहा पढमसए चियउद्देसए तहेव लेस्साविभागो अप्पावहुगं च' कृष्णलेश्या यथा भगवान् ने धर्म का उपदेश दिया, उसे सुनकर परिषद् विसर्जित हो गई। इसके बाद विविध पर्युपासना से उपासना करते हुए गौतम ने दोनों हाथ जोड कर' इस पाठ का संग्रह हुआ है। 'गौतम ने भगवान् से क्या पूछा- सो अब प्रकट किया जाना है- 'कह णं भंते । लेस्साओ पण्णत्ता' - हे भदन्त ! लेश्याऍ कितनी कही गई हैं? इसके उत्तर में प्रभु ने कहा - 'गोपमा 'छल्लेस्साओ पण्णत्ताओ' हे गौतम | लेइपाएँ छह कही गई हैं । 'तं जहा ' वे इस प्रकार से हैं-' कण्हलेस्सा जहा पढमसए बिहयउद्देसए तहेव लेस्साविभागो अध्याबहुगं च' कृष्णलेश्या इत्यादि यहां प्रथमशतक के द्वितीय उद्देशे में कहे अनुसार लेश्याओं का विभाग और इनका अल्पचहुत्व यावत् 'चउन्विहाणं देवाणं चव्विहाणं देवीणं मीसगं अपागं त्ति' चार प्रकार के देवों के और चार प्रकार की देवियों के मिश्र अल्पबहुत्व तक कहना चाहिये । प्रथम शतक का वह મહાર નીકળી, ભગવાને તેએાને ધદેશના સંભળાવી, ધમ દેશના સાંભળીને પરિષદ્ ાત પેાતાના સ્થાન પર પાછી ગઈ તે પછી કાયિક, વાચિક, અને માનસિક એમ ત્રણે પ્રકારની પ`પાસનાથી સેવા કરતા એવા ગૌતમસ્વામીએ मन्ने हाथ लेडीने लगवानने या प्रमाये पूछयु - ' कइ णं भंते ! लेखाओ पण्णત્તાત્રો' હે ભગવત્ લેશ્યાએ કેટલી કહેવામાં આવી છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં अनु - 'छल्लेस्साओ पण्णचाओ' हे गौतम! श्याम छ 'तं जहा' ते आा अभा] 'कहलेस्सा नहा पढमसए बिइयउद्देसए तद्देव लेस्सा विभागो अप्पाबहुगं 'च' यु बेश्या, विगेरे मडियां पडेसां शताना मील ઉદ્દેશામાં કહ્યા પ્રમાણે લેસ્યાએના વિભાગ અને તેનુ અલ્પ બહુત યાવત 'चडव्विाण देवाणं चउव्विहाण देवीण मी अप्पाबहुगंत्ति' यार अारना देवानु અને ચ ર પ્રકારની દેવીઓના મિશ્ર અલ્પ બહુત્વ સુધી કહેવું જોઇએ. પહેલા
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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