SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 509
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -rA .. प्रमेयंचन्द्रिका टोका श०२४ उ.२४ सू०२ सनत्कुमारदेवोत्पत्तिनिरूपणम् .. ४९९ : नो देवेभ्य आगत्योत्पद्यन्ते किन्तु पश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्यो मनुष्येभ्यश्च आगत्योत्पद्यन्ते इत्युत्तरम् । फियत्पर्यन्त शर्करामभानारकातिदेशः "करणीय • एतदाशयेनाह-'जाव पज्जत्त' इत्यादि । 'जाव पज्जतस खेज्जवासाउयंसन्नि पंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! यावत् पर्याप्तसंख्येयवर्षायुषकसंज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकः खलु भदन्त ! 'जे भविए सणंकुमारदेवेसु उववज्जित्तए' यो भव्यः सनत्कुमारदेवे वृत्पत्तुं स खलु भदन्त ! कियकालस्थितिकसनत्कुमार देवेपूत्पधेत इति पश्नः उत्तरमाह-'अवसेसा' इत्यादि । 'अवसेसा परिमाणादीया भवादेसपज्जवसाणा सच्चेव वत्तण्या माणियवा' 'अवशेषाः परिमाणादिकाः की पर्याय रूप से उत्पन्न नहीं होते हैं और न देवों से आकरके सनकुमार की पर्यायरूप से उत्पन्न होते हैं किन्तु पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकों से और मनुष्यगति से आकरके ही वे सनकुमार देवों की पर्याधरूप से उत्पन्न होते हैं। यहां शर्कराप्रभा के नारको का अतिदेश कहाँ तक करना चाहिये लो इसी आशष को लेकर सूत्रकार ने 'जाव पत्त' ऐला फहा है यावत्-'पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसन्निपंचिदियतिरिक्ख. जोणिएणं भंते !' हे भदन्त ! जो पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क संज्ञीपञ्चन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव 'जे भविए सणंकुमारदेवेस्लु' उववन्जित्तए जो सनत्कुमार देवों में उत्पन्न होने के योग्य हैं वे कितने काल की स्थिति वाले सनत्कुमार देवों में उत्पन्न होता है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं-'अबसेसा परिमाणादीया भवादेसपज्जवसाणा सच्चे वत्सઉત્પન્ન થાય છે? ગૌતમસ્વામીના આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ તેમને કહે છે કે હે ગૌતમ! તેઓ નરયિકોમાંથી આવીને સનકુમારના પર્યાયપણાથી ઉત્પન્ન થતા નથી, તથા દેમાંથી આવીને સનકુમારને પર્યાય રૂપથી પણ ઉત્પન્ન થતા નથી. પરંતુ પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ વિકેમાંથી અને મનુષ્યગતિમાંથી આવીને જ તેઓ સનકુમાર દેવના પર્યાયપણાથી ઉત્પન્ન થાય છે. અહિયાં શર્કરાપ્રભા પૃથ્વીના નારકેને અતિદેશ કયાં સુધી ગ્રહણ કરવો જોઈએ? એ भाशयथा सूत्रधारे 'जाव पज्जत' से प्रभाये ४धु छे जाव यावत् 'पज्जनसंखे. जवासाउयसन्निपचिंदियतिरिक्खजोणिए ण भंते !' 8 लगवन पर्याप्त सध्यात वर्षमा मायुष्यवाणा पयन्द्रियतियय योनिमा' 'जे भविए सणकुमारदेवेस उववज्जित्तए' रे । सनमा२ हवामा 4-1 थवान योग्य छे. ते. હાકાળની સ્થિતિવાળા સનસ્કુમાર દેવોમાં ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના उत्तरमा अ छे है-'अवसेसा परिमाणादीया भवादेसपज्जवसाणा सच्चेव
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy