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________________ ४७८ t भगवती सूत्रे 'बासाउयसन्निपचिदियतिरिक्खजोगियस्स' एवं यथैवासंख्यातवर्षायुष्कसंज्ञिपञ्चेमन्द्रियतिर्यग्योनिकस्य 'सोहम्मे कप्पे उपवज्जमाणस्स तत्र सत्त गमगा' सौधर्मे कल्पे उत्पद्यमानस्य तथैव सप्त गमकाः प्रयमास्त्रयो गमकाः ३, मध्यमत्रयस्य एको 'गमः १, चरमस्य त्रयो गमाः ३, इत्येवं सप्त गमका उन्नेयाः । 'नवर' आदिलए दो गमएस ओगाहणा जहन्नेणं गाउयं' नवरम् - केवलम् आद्ययोर्द्वयोः प्रथमद्वितीययोर्गमयो जघन्येन अवगाहना गव्यूतम् 'उको सेगं तिन्नि गाउयाई ' "उत्कर्पेण त्रीणि गव्यूतानि, आगमयो हिं सर्वत्र धनुःपृथक्त्वं जघन्यावगाहना, उत्कृष्टा तु गव्यूत पट्टकमुक्ता, अत्र तु जघन्यावगाहना गव्युतममाणा उत्कृष्टा तु त्रियन्युतप्रमाणा कथितेति वैलक्षण्यमिति । 'तइयगमे जहन्नेणं विन्नि गाउयाई' - तृतीयगमे जघन्येनावगाहना त्रीणि गव्युतानि तथा - ' उक्कोसेण वि तिन्नि गाउहोता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं । 'एवं जहेव असंखेज्जवासाज्य. स सन्निचिदियतिरिक्ख जोणियस्स' हे गौतम! सौधर्मकल्प में उत्पद्यमान असंख्यातवर्षायुष्कसंज्ञी पश्चेन्द्रिय तिर्यश्च के सम्बन्ध में जिस प्रकार से सात गम कहे गये है, उसी प्रकार से वे सात गमक यहां पर भी कहना चाहिये । वे सात गम इस प्रकार ले है- प्रथम के ३ गम, मध्यम तीन गमकों में से एक चतुर्थ गम, और अन्त के ३ गम । 'नवरं आदिल्लेसु दो गमप ओगाहणा जहन्नेणं गाउयं' परन्तु प्रथम के जो ३ गमक है उनमें से पहिले के दो गमकों में शरीर की अवगाहना का प्रमाण जघन्य एक कोश का है और 'उक्को सेणं तिन्नि गाउयाई' उत्कृष्ट से ३ कोश का है । तथा - ' तयगमे जहन्नेणं तिन्नि गाउयाई, उक्कोसेणं प्रभु गौतम स्वाभीने अछे - ' एवं जद्देव अस खेज्जवासा उयस्स सन्नि पचि - दियतिरिक्लजोणियस्स' हे गौतम! सौधर्भमा उत्पन्न धनारा असभ्यात વર્ષની આયુષ્યવાળા સન્ની પંચેન્દ્રિય તિય ચના સંબધમાં જે પ્રમાણે સાત ગમ કહ્યા છે, એજ પ્રમાણે તે સાત ગમે અહિયાં પણ કહેવા જોઇએ. તે સાત ગમે આ પ્રમાણે છે.-પહેલાના ત્રણ ગમા, મધ્યના ત્રણ ગમે પૈકી એક ચેાથે ગમ, અને અન્તના ત્રણ ગમેા એ રીતે સાત ગમે થાય છે. 'नवरं आदिल्लेसु दोसु गमएस ओगाहणा जहन्नेणं गाउयं' परंतु पडेला ने ત્રણ ગમે છે, તે પૈકી પહેલાના એ ગમે માં શરીરની અવગાહનાનું પ્રમાણુ धन्यश्री शेड गाउनुं छे, भने 'उक्कोसेण तिन्नि गाउयाई" उत्ष्टश्री त्रषु गाउनी है तथा 'तइयगमे जहन्नेणं तिन्नि गाउयाई उक्कोसेग वि तिन्नि गाउH याइ' न्रील गममां धन्य मने उत्सृष्टथी 3-3 गाउनी शरीरनी अवजा
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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