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________________ ચૂંટ भगवती सूत्रे भाणियन्त्रा' सैव चतुर्थगमवक्तव्यता भणितव्या । चतुर्थगमे प्रथमगमतिदेशेन यत् यत् कथितं तत्सर्वं परिमाणादारभ्य कायसंवेधान्तं निरवशेष बैलक्षण्यादिरहिनमवगन्तव्यमिति पञ्चमो नमः ५ पष्ठं गमं दर्शयति- 'सो aa aaate' इत्यादि, 'सो चैव उक्कोसकालट्ठिएस उबवन्नो' स एव उत्कृष्टकाल स्थिति केषु पृथिवीकायिकेषु उपपन्नः स एव स्वात्मना जघन्यकालस्थितिकपृथिवीकायिकजीव एव यदि उत्कृष्टकालस्थितिक पृथिवीकायिकेषु समुत्पन्नो भवेत् तदा - 'एसचैव वत्तन्वया' एपैव-पश्चमगमोक्तैव वक्तव्यता वक्तव्या - भणिया पश्चगमे यत् चतुर्थगमातिदेशः कृतः, तत्रापि प्रथमगमस्यातिदेशेन प्रथम गर्मे यथा कथितं तत् सर्वं तेनैव रूपेण षष्टगमेऽपि वक्तव्यम् । पूर्वगमापेक्षया कही गई है वही वक्तव्यता पुरी की पूरी कहनी चाहिये, अर्थात् चतुर्थ. गम में प्रथम गम के अतिदेश से जो जो कहा गया है वह सब परिमाण द्वार से लेकर काय संवेधद्वार तक बिना किसी भिन्नता केअन्तर के यहां कहना चाहिये। ऐसा यह पांचवां गम है । - छठा गम इम प्रकार से है- 'सो चेव उक्कोसकालट्ठिएस उवचन्नो' यही जघन्य कालकी स्थितिवाला पृथिवीकायिक जीव यदि उत्कृष्ट काल की स्थितिवाले पृथिवीकायिकों में उत्पन्न होने के योग्य है-तो वहीं पर भी 'एस चैव वत्तदया' यही पंचम गमोक्त वक्तव्यता कहनी चाहिये। पंचम गम में चतुर्थ गम का अतिदेश किया गया है, चतुर्थ गम में प्रथम गमका अतिदेश किया गया है-सो प्रथम गम के प्रकरण में- जैसा कहा गया है वैसा ही वह सब उसी रूप से इस षष्ठ गम में भी भाणिग्रच्चा' थोथा गभमां ने अभाषेतु अथन उरवामां भाव्यु छे, भेन પ્રમાણેનુ કથન પુરેપુરૂ કહેવું જોઈએ. અર્થાત્ ચેાથા ગમમાં પહેલા ગમના અતિદેશ—ભલામણથી જે જે કથન કરવામાં આવ્યું છે, તે તમામ, પરિમાણુ દ્વારથી લઈને કાયસ વેષ દ્વાર સુધી કઈ પણ ફેરફાર શિવાય અહિયાં કહેવું જોઈએ આ રીતે આ પાંચમે ગમ કહ્યો છે. પ 1 हवे छठ्ठा भनु उथन रवामां आवे छे. - सो चेव उक्कोसकालठ्ठिइएसु उबवन्नो' मा धन्य भजनी स्थितिवाणी पृथ्वी अयि लव लेटકાળની સ્થિતિવાળા પૃથ્વિકાયિકામાં ઉત્પન્ન થવાને ચાગ્ય છે, તે તે સબधभां पशु 'एस चेव वत्तन्वया' पांथभां गभभां ह्या अभाषेनु अथन उडे જોઈએ પાંચમાં ગમમાં ચેાથા ગમનેા અતિદેશ-ભલામણુ કરેલ છે. અને ચેથા ગમમાં પહેલા ગમના અતિદેશ કરેલ છે, પહેલા ગમમાં તે કથન જે રીતે કહેલ છે તેજ પ્રમાણેનુ' તે સઘળું' કથન આ છઠ્ઠા ગમમાં પણ કહી
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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