SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 463
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.२३ सु०१ ज्योतिष्केषु जीवानामुत्पत्तिः ४५ वाहनो नवधनुःशतप्रमाणावगाहनः तत्कालीनहस्त्यादयश्च तद् द्विगुणशरीराव गाहनाः तत्पूर्वतरकालभाविनश्च ते सातिरेकतत्प्रमाणा भान्तीति । 'ठिई जहन्नेणं अष्टभागपलिओन्म' स्थितिजघन्येनाण्टभागपल्योपनम् पल्योपमाष्टमभागप्रमाणा जघन्या स्थितिर्भवतीति । 'उक्कोसेण वि अट्ठ मागपलिओवमं' उत्कर्पणाऽपि अष्ट भाग पल्योपमम् ‘एवं अणुबंधो वि' एवं स्थिविवदेव जघन्योत्कृष्टाभ्यां पल्योपमाष्टतर काल भावी हस्त्यादि भिन्न क्षुदकाय बाले चतुष्पद हैं उनकी अपेक्षा करके कहा गया है। तथा 'उक्सोसेणं' उत्कृष्ट से इनके शरीर की अवगाहना 'सातिरेगाइं अहारलधणुमयाई' सातिरेक १८०० अठारह सो धनुष प्रमाण है। उत्कृष्ट अवगाहना जो यहां अठारहता १८०० धनुष की कही गई है वह विमलवाहन कुलकर के पूर्वतर काल भावी इस्ति आदि की अपेक्षा ले कही गई है। क्योंकि घिमलवाहन की अव गाहना ९०० नौसी धनुष की थी और उनके काल के हस्ति आदि दुगुनी अवगाहना वाले थे। तथा इन से भी पूर्वनर कालवर्नी जो हस्ति आदि थे वे सातिरेक दुगुनी अवगाहना वाले थे अर्थात् १८०० धनुष की अवगाहना से भी अधिक अवगाहना वाले थे। 'ठिई जहन्नेणं अट्ठ भागपलिभोवम' स्थिति यहां जघन्य से एक पल्य के आठवें भाग प्रमाण है और 'उक्कोमेण वि अलोगपलि भोवर्म' उत्कृष्ट से भी वह एक पल्य के आठ माग प्रमाग है। 'एवं अणुबंधो वि' स्थिति के जैसही अनुबन्त्र 'भी यहाँ जघन्य और उत्कृष्ट से पल्पोपम के मुं। क्षुद्राय यतुप छाछ, तमनी अपेक्षा प्रशन 3 . तथा 'उकोसेणं.. थी तभना शरीरनी अचाहना 'सातिरेगाई अट्ठारसधणुस योइ' साति२४ (કંઈક વધારે) ૧૮૦૦ અઢા સે ધનુષ પ્રમાણ છે. ઉત્કૃષ્ટ અવગાહના અહિયાં જે ૧૮૦૦ અરાડો ધનુષની કહી છે, તે વિમલવાહન કુકરના પહેલાના કાળમાં થનારા હાથી વિગેરેની અપેક્ષાથી કહી છે. કેમકે વિમલવાહનની અવગાહના ૯૦૦ નવ ધનુષની હતી અને તેમના કાળ સમયના હાથી વિગેરે બમણ અવગાહના વાળા હતા. તથા તેનાથી પણ પહેલાના કાળના જે હાથી વિગેરે હતા તેઓ સાતિરેક બમણી અવગાહનાવાળા હતા અર્થાત ૧૮૦૦ અઢારસો ધનુષની અવગાહનાથી પણ વધારે અવગાહનાવાળા હતાં 'ठिई जहन्नेण अदभागपलि ओवम' माडयां स्थिति धन्यथा से पत्याना मामा मास प्रभानी छे. भने 'उकोसेणं वि अट्ठभागलि भोवम' Gथा ५ ते ४ ५६५मा अमानी छे. 'एवं अणुबधेो वि' स्थितिना કથન પ્રમાણે જ અનુબંધ પણ અડિયાં જઘન્યથી અને ઉત્કૃષ્ટથી પ૫
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy