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________________ भगवतीसूत्रे ४३६ सिएल उववज्जित्तए से णं भंते' यो भव्यो ज्योतिष्मदेवेपृत्पत्तुम् स खलु भदन्त ! 'केवइयकालटिइएसु उबवज्जेज्जा' कियकालस्थितिके पुत्पद्येत ? इति प्रश्नः भगवानाहगोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमहिइएसु' जघन्येन अष्टभाग पल्पोपमस्थितिकेषु ज्योतिष्के पून्पधेत पल्योपमस्याष्टमभागस्थितिकेषु इत्यर्थः 'उकोसेणं पलिभोवमवाससयमहस्सटिइएस उबवज्जेज।' उत्कर्षेण पल्योपमवर्षशतसहस्रस्थिति केषु वर्षशतसहस्राधिक (एकलक्षवर्षाधिक) पल्योपमस्थितिकेषु इत्यर्थः उत्पद्येत 'अवसेसं .जहा असुरकुमारुदेसए' अवशेषम्-उत्पादद्वारातिरिक्तं परिमाणादिद्वारजातं यथाऽसुरकुमारोदेश के कथितं तथैव ज्योतिष्कप्रकरणेऽपि भदन्त! जो असंख्यातवर्ष की आयु वाला संज्ञी पञ्चेन्द्रियतियश्चज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होने के योग्य है से णं भंते ! केवायकालठिइएसु उपघज्जेज्जा' वह कितने काल की स्थितिबाले ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होने के योग्य है ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! यह 'जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमहिएतु, उक्कोसेणं पलिओचमवाससयसहरूलहिहएतु उववज्जेज्जा' जघन्य से पल्योपम के आठवें भाग प्रमाण की स्थितिवाले ज्योतिषकदेवों में उत्पन्न होता है और उत्कृष्ट से एकलाख वर्ष अधिक एक पल्पोपम की स्थितिवाले ज्योतिष्क देषों में उत्पन्न होता है । 'अवक्षेसं जहा असुरकुमारुदेसए' अवशिष्ट कथन -अर्थात् उत्पादद्वार ले अतिरिक्त बाकी परिमाण आदि द्वारों का कथन जैसा असुरकुमारोद्देशक में कहा गया है। उसी प्रकार से इस ज्योજે અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા સંશી પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ તિષ્કમાં उत्पन्न वाने योग्य छ, 'से णं भंते ! केवइयकालद्विइएसु उबवज्जेज्जा' त કેટલા કાળની સ્થિતિવાળા તિષ્ક દેવામાં ઉત્પન્ન થાય છે? मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु गौतम साभार ४ छ ?--'गोयमा' से गीतम a 'जहन्नेण अट्ठभागपलिओवमद्विइएसु उक्कोसेणं पलिओवमवाससय. सहस्सद्विइएसु उववज्जेज्जा' धन्यथी पक्ष्यापमान माम मा प्रभानी સ્થિતિવાળા તિષ્ક દેવમાં ઉત્પન્ન થાય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી એક લાખ વર્ષ અધિક એક પલ્યોપમની સ્થિતિવાળા તિષ્ક દેવેમાં ઉત્પન્ન થાય છે. 'अवसेसं जहा असुरकुमारुहेसए' मानु तमाम ४थन अर्थात् त्या वार શિવાય પરિમાણ વિ. દ્વારનું કથન અસુરકુમારોના ઉદ્દેશામાં જે પ્રમાણે
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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