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________________ ४१६- *7 भगवतीसूत्रे: C पद्यन्ते अथवा 'मणुसेतो उनवज्जंति' मनुष्येभ्य आगत्य उत्पद्यन्ते अथवा 'देवेदितो उववज्र्ज्जति' देवेभ्य आगत्योत्पद्यन्ते इति प्रश्नस्य संग्रहः । अतिदेशत" उत्तरयति - 'एवं जव' इत्यादि । 'एवं जदेव नागकुमारउदेसर असन्नि निश्व सेस'एवं यथैव नागकुमारीदेश के असंज्ञि० तथैव निरवसेपम् । यथा नागकुमारीदेशके असमिकरणम् । तत्र नागकुमारोद्देश के असुरकुमारोदेशकस्यातिदेशः असुरकुमारो-देशके 'एवं जव 'नेर उद्देसए' इत्येवमतिदेशः कृतस्ततो नैरथिकोदेशके सर्वे सविस्तरमसंज्ञिप्रकरणं द्रष्टव्यमिति । तत्र यथा - उत्पाद परिमाणादिकं कथितं तथैव वानव्यन्तरकरणेऽपि असंज्ञिपञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक वक्तव्यतापर्यन्तं निरवशेषं : जोणिएहितो ववज्र्ज्जति' तिर्यग्योनिकों से आकरके उत्पन्न होते हैं? अथवा 'मनुस्से तो उववज्जंति' 'मनुष्यों से आकरके उत्पन्न होते हैं ? अथवा 'देवेहिंनो उववज्ज'ति' देवों से आकरके उत्पन्न होते है ? 1 - * * अतिदेश को अश्रित करके प्रभु इसके उत्तर में गौतम से कहते है एवं जहेव नागकुमारउद्देसए असन्नि० तहेव निरवसेसं' हे गौतम! नागकुमार के उद्देशे में जैसा कहां गया है वैसा असंज्ञी प्रकरण तक संघ कथन यहाँ पर करना चाहिये । तात्पर्य इसका यही है कि नाग-कुमार के प्रकरण में आये हुए असंज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक प्रकरण में जिस प्रकार से उत्पाद परिमाण आदि का कथन किया जा चुका उसी प्रकार से वह सब कथन इस वानव्यन्तर के प्रकरण में भी कहना चाहिये | यहां नागकुमार उद्देशकका अतिदेश (भोलावण) किया है नागकुमार प्रकरण में असुरकुमारका अतिदेशकिया है और. कुमार प्रकरणमें नैरयिक उद्देशकका अतिदेश है इसलिये असंज्ञी का असुर:अथवा 'मणु अथवा 'देवे = } उज्जत' तिर्यथ योनिमाथी भावीने उत्पन्न थाय छे ? सेदितो उत्रवज्जति' मनुष्य भांथी भावीने उत्पन्न थाय छे हितो उववज्जति देवोभांथी भावीने अत्यन्त थाय छे ? ? 1 પ્રભુ આ પ્રશ્નના ઉત્તર' આપતાં 'મહાવીર અતિદેશ (ભલાષણ)ના आश्रय उरीने गौतमस्वामीने डे छे – ' एवं जहेब नागकुमार देखए असन्नि०' तत्र निरवसेसं' हे गौतम! नागकुमारना उद्देशामां के प्रभा કહેવામાં આવ્યું છે. એજ પ્રમણેનુ' કથન અહિયાં કહેવુ જોઈએ. કહેવાતુ તાત્મ એ છે કે-નાગકુમારના ઉદ્દેશામાં આવેલ અસન્નિ પચેન્દ્રિય તિય ચ ચેાનિકના પ્રકરણમાં જે પ્રમાણે ઉત્પાદ, પરિમાણુ વગેરેનું કથન કરામાં આવ્યું છે, એજ પ્રમાણે તે તમામ કથન આ ાનવ્યંતર ધ્રુવેના પ્રકરણમાં +
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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