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________________ ___मेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.२१ सू०२ आनतादिदेवेभ्यः मनुष्येषूत्पत्तिः ४०७ स्थितिवदेव अनुबंधोऽपि जघन्योत्कृष्टवरहित एकप्रकारक एवं भवतीति, सैसें तें चेव' शेषं तदेव-विजयादिदेवमकरणोदीरितमेवेति । 'भवादेसेणं दो भवरगहणाई भवादेशेन द्वे भवग्रहणे, 'कालादेसेणं जहन्नेणं 'तेत्तीसं सांगरोचमाई वासपुहुत्तमभहियाइ" कालादेशेन जघन्येन त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणि वर्ष पृथक्त्वाभ्यधिकानि तथा-'उकोसेणं तेत्तीसं सागरोबमाइ पुच्चकोडीए अमहियाई" उत्कर्षण त्रयस्त्रिं, शरसागरोपमाणि पूर्वकोटयभ्यधिकानि जघन्योत्कृष्टत्वरहित्येन स्वस्थिती मनुष्या भवगतजघन्योत्कृष्टस्थितिसंमेलनेन यथोक्तो जघन्य उत्कृष्टतश्च कालादेशेन कायसंवेधो भवतीति भावः। 'एचइये जाव व रेज्जा' एतावन्तं कालं यावत्कुर्यात् एता इसी प्रकार से जघन्य और उत्कृष्टता से रहित अनुबंध भी ३३ सागरोपम की है। सेसं तं चेव' वाफी का और सब कथन विजयादि देव प्रकरणं के जैसा ही है। कायसंवेध 'भवादेसेणं दो भवग्गहणाई' भव की अपेक्षा दो भवों को ग्रहण कर ने रूप है और 'कालादेसेणं, जहन्ने] तेत्तीसं सागरोक्माई.' 'काल की अपेक्षा वह जघन्यं से वर्षपृथक्त्व अधिक ३३ सागरोपम रूप है और 'उक्कोसेणं तेत्तीसं सांगरीवमाह पुच्चकोंडीए अमहियाई" उत्कृष्ट से वह पूर्वकोटि अधिक ३३ सागरोंपंम रूप है। यहाँ जो कायसंवेध जघन्य और उत्कृष्ट रूप से प्रकट किया गया है सो उसका कारण ऐसा है कि यहां की स्थिति में मनुष्य भव गत जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति का संमेलन हुआ है। इसलिये काल की अपेक्षा कायसंवेध पूर्वोक्त रूप से प्रकट किया गया है एवं.५ रन मनुमय पY 33 त्रास सामना । छे. 'सेस तं चेत्र બાકીનું સઘળું કથન વિજય વિગેરે દેના પ્રકરણમાં કહ્યા પ્રમાણેનું જ છે.” यस वध-भवादेसेणं दो भवगहणाइ" सनी अपेक्षा में पाने अड ४२१।' ३५ ७.' मने 'कालादेसेणं जहन्नेणं तेत्तीस सागरोवमाई.' जना અપેક્ષાથી તે જઘન્યથી વર્ષ પૃથફત્વ અધિક ૩૩ તેત્રીસ સાગરોપમ રૂ૫ છે. भने veथा 'उक्कोसेण तेत्तीसं सागरोवमाइ पुव्वकोडीए अब्भहियाइ' . ટથી તે પૂર્વકાટિ અધિક ૩૩ તેત્રીસ સાગરોપમ રૂપ છે. અહિયાં કાય વેધ જે જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ પણુથી બતાવેલ છે, તેનું કારણ એવું છે કે અહિંની સ્થિતિમાં મનુષ્ય ભવ સંબંધી જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિનું મિલન થયું છે. તેથી કાળની અપેક્ષાથી કાયસંવેધ પહેલા કહ્યા પ્રમાણે બતાવેલું छे. 'एवश्य जाव' करेज्जा' ये रीत ते ८५ मादा क्षण सुधा साथ
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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