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________________ भगवती ३६० अणुबंध संदेह च जाणेज्जा' एवं स्थितिमनुबन्धं संवेधं च जानीयात् स्थित्यनु वन्धकायसंवेगन मिन मिनरूपेग जानीयादित्यर्थः । ' एवं जाव अच्चुयदेवो' एवं यथा अनतदेवानां मनुष्यगतौ उत्पादे नवापि गमा उत्पादादिद्वारे निरूपिताः तथैव अच्युत देवलोक पर्यन्तदेवानां मनुष्येषु उत्पादादिद्वारे नवाऽपि गमा निरूपणीया इति भावः | 'नवरं ठिई' अणुवधं संवेह' च जाणेज्जा' नवरं केवलं स्थित्यनुवन्धकायसंवेधान् भिन्नान् भिन्नां च जानीयात् आनतदेवापेक्षया अच्युतपर्यन्तदेवानां मनुष्येत्पादे स्थित्यनुवन्वायसंवेधान् भिन्नभिन्नानेव स्वस्वभवमाश्रित्य स्थितिमनुबन्धं च जानीयात्, तथा - काय संवेधं च स्वस्वस्थित्या साधै मनुष्यमवस्थितिं समेत्य जानीयादिति भावः । आनतदेवापेक्षा अच्युतपर्यन्त को लेकर प्रथमम कहा गया है उसी प्रकार से द्वितीयादिनवान्त गम भी कह लेना चाहिये । 'नवरं ठि अणुबंध संवेह च जाणेज्जा' पर स्थिति अनुबंध और सवेध इनमें भिन्नता जाननी चाहिये । 'एवं जाव अच्चुयदेवो 'जिस प्रकार से आनतदेवों के मनुष्यगति में, उत्पाद में उत्पाद आदि द्वारों को लेकर ९ गम कहे गये हैं । उसी प्रकार से अच्युत देवलोक तक के देवों के मनुष्यगति में उत्पाद के उत्पाद आदि द्वारों को लेकर नौ गम कहना चाहिये । 'नवरं ठिई अणुबंधं संवेहं च जाणेज्जा' परन्तु आनतदेव की अपेक्षा से अच्युत पर्यन्त देवों का मनुष्यों के उत्पाद में स्थिति, अनुबन्ध और काय संवेध, अपने भव को आश्रित कर के भिन्न भिन्न जानना चाहिये । तथा कायसंवेध अपनी २ स्थिति के साथ मनुष्य भव की स्थिति को संमिलित करके जानना चाहिये आनतदेवों की अपेक्षा से अच्युत पर्यन्त के देवों में स्थित्यंश में भेद प्रकट करने के अभिप्राय से 'पाणयदेवस्त ठिई निगुणिया सहिं सागरोवमाई' गभेो यद्यु ईही सेवा 'नवर ठि' अणुत्रध' संवेह च जाणेजो' परंतु स्थिति, अनुञध भने यस'वेधमां नुहायागु समभवु ' एवं जाव अच्चुयदेवो' જે પ્રમાણે આનત દેવાના મનુષ્ય પણામાં ઉત્પાતના સબંધમાં ઉત્પાદ વિગેરે દ્વારાને લઇને ૯ નવ ગમેા કહ્યા છે, એજ રીતે અચ્યુત દેવલેાક સુધીના દેવાના મનુષ્યપણાના ઉત્પન્ન થવાના સમ ધમાં ઉત્પાદ વિગેરે દ્વારાને લઈને नव गभेो हेवाले थे. 'नवरं ठिइ अणुबंध' सवेहूं च जाणेज्जा' परंतु मानत ધ્રુવની અપેક્ષાથી અદ્યુત સુધીના મનુષ્યના ઉત્પાદમાં સ્થિતિ, અનુ. ખંધ, અને કાયસ વેષ પાતપાતાના ભવને માશ્રિત કરીને જુદા જુદા સમ જવા, તથા કાયસ વેધ પાતપેાતાની સ્થિતિની સાથે મનુષ્ય ભવની સ્થિતિને મેળવીને સમજવા જોઇએ માનતદેવની અપેક્ષાથી અમ્રુત સુધીના દેવોના સ્થિત્ય શમાં ભેદ મનાવવાના अभिप्रायथी 'पाणयदेवस्ख ठिई तिगुणिया
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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