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________________ ३७२ % 3D भगवतीसो कुमाराणां संग्रहो भवतीति । 'असुरकुमारे णं भंते ! जे भविए मणुस्सेसु उवाज्जित्तए' असुरकुमारः खलु भदन्त ! यो भव्यो मनुष्येपूत्पत्तुम् ‘से णं भंते ! केव. इयकालटिइएमु उवरज्जेज्जा' स खल्लु भदन्त ! कियत्कालस्थिति के पूत्पद्यते इति प्रश्नः। भगवानाह-गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम । 'जहन्ने मासपुहुत्तद्विइएसु' जघन्येन मामपृथक्त्वस्थिति के पु द्विमासादारभ्य नवमासपर्यन्तस्थितिकमनुष्येपूत्पद्यते असुरकुामार इति, 'उकोसेणं पुषकोडीआउएसु उववज्जेज्जा' उत्कर्षण पूर्वकोटिममाणायुष्फमनुप्येषु समुत्पद्येन, असुरकुमार ज्जति, जाव थणियकुमारभवणवासिदेवेहितो वि उववज्जति' असुरकुमारभवनवासी देवों से आकरके भी जीव मनुष्य गति में उत्पन्न होते हैं और यावत् स्तनितकुमार भयणवासी देवों से भी आकरके जीव मनुष्यगति में उत्पन्न होते हैं। यहां पर भी यावत्पद से नागकुमार आदि आठ कुमारो का संग्रह हुआ है। _____ अब गौतम प्रभु से पुनः ऐसा पूछते हैं-'असुरकुमारे णं भंते ! ". जे भविए मणुस्सेसु उववज्जित्तए' हे भदन्त । जो असुरकुमार मनुष्यों में उत्पन्न होने के योग्य है वह है भदन्त । 'केवइयकालविएस्सु उववज्जेज्जा' कितने काल की स्थिति वाले मनुष्यो में उत्पन्न होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! वह असुरकुमार 'जहन्नेणं मासपुहुत्तहिइएसु, उक्कोसेणं पुवककोडीआरएसु उवव ज्जेज्जा' जघन्य से मासपृथक्त्व की आयुवाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है और उत्कृष्ट से एक पूर्वकोटि की आयु वाले मनुष्यों में उत्पन्न थणियकुमारभवणवासिदेवेहितों वि उववज्जति' असुषुमार सपनवासी દેમાંથી આવીને પણ જીવ મનુષ્ય પણાથી ઉત્પન્ન થાય છે. અને યાવત તનિત કુમાર ભવનવાસી દેવામાંથી પણ આવીને જીવ મનુષ્ય પણુમાં ઉત્પન્ન થાય છે. અહિયાં પણ યાવત પદથી નાગકુમાર વિગેરે આઠ અસુરકુમાર દેવ ગ્રહણ કરાયા છે.' वे गौतमस्वामी प्रसुन से पूछे छे ४-असुरकुमारे णं भंते ! जे भविए मणुस्सेसु उववज्जित्तए' 3 भगवन्न मसू२४भार भनुध्यामा उत्पन्न थवान योग्य.छे, तो 'केवइयकालदिएस उववज्जेजा' मा मनी स्पिात વાળા મનુષ્યમાં ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે 'गोयमा' ' गीतम! ते भसुशुमार 'जहन्नेणं मासपहत्तदिइएसु उकासेण पुवकोडीआउएसु उववज्जेज्जा' धन्यथा मास पृथत्वनी मायुष्याणा મનુષ્યમાં ઉત્પન્ન થાય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી એક પૂર્વકેટિની આયુષ્યવાળા मनुष्येभा पन्न थाय छे. 'एवं जच्चेव पचिंद्रियतिरिक्खजोणियउद्देसए
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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