SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 347
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ. २००६ देवेभ्य' पं० तिर्यग्योनिकेषूत्पातः ३२९ तथा - 'कोणं पुन्नकोडी आउएस उपपन्नई' उत्कर्षेण पूर्वकोटिममाणका युकेषु पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनि के प्रपद्यते इत्युत्तरम् । 'असुरकुमाराणं लद्धी वसु विगमप जहा पुढवीकाइएस उबवज्जमाणस्स' असुरकुमाराणां लब्धिः परिमाणादिका नवदपि गमकेषु यथा पृथिवीकायिकेषु उत्पद्यमानस्यासुरकुमारस्य कथिता तेनैव प्रकारेण पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेषु समुत्पचमानस्यासुरकुमारस्यापि वक्तव्या । 'एवं जावईसाणदेवस्स वि तव द्वी' एवम् असुरक्कुमारखदेव यावत् ईशान देवस्यापि नवस्वपि गमकेषु तथैव लब्धिर्वाच्या, यथा पृथिवीकायिकेषु देवानामुत्पत्तिः कथिता, अनुरकुमारमादौ ईशान देवं चान्ते कृत्वा, एवमेव ईशानकान्तare पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकषु लधिर्वक्तव्या, ईशानकान्त, एव च देवः पृथिवी होता है तथा 'कृष्ट से 'पुन्चकोडीआरएस उबवज्जह' एककोटी' पूर्व की आयुषाले संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है । 'असुरकुमाराणं लद्वी णवस्तु वि गमएस जहा पुढचीकाइएस उबवज्जमाणस्त' इसके नौ गमकों में जो वक्तव्यता पृथिवीकायिकों में उत्पन्न होने वाले असुरकुमारों के सम्बन्ध में कही गई है वही वक्तव्यता कर लेनी चाहिये । अर्थात् परिमाण आदि द्वारों का कथन जैसा पृथिवीकाधकों में उत्पन्न होने वाले असुरकुमारों के नौ गमकों में पहिले कहा जा चुका है, उसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों में उत्पन्न होने वाले इन असुरकुमारों के नौ गमकों में भी परिमाण आदि द्वारों का कथन करना चाहिये । 'एवं जाव ईसाणदेवस्स तहेव लद्वी' असुर कुमार के नौ गमको की वक्तव्यता के जैसी ही पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों में उत्पद्यमान यावत् ईशान देवलोक तक के देवों के नौ गमकों में भी स्थितिवाजा सज्ञी यथेन्द्रिय तिर्ययामां उत्पन्न थाय छे तथा 'उक्कोसेणं' Grष्टथी 'पुव्वकोडीआरएसु उववज्जह' मे पूर्व अटिनी आयुष्यवाजा संज्ञीयथेन्द्रियतिय यामा उत्पन्न थाय छे. 'असुरकुमाराणं लद्धी णवसु वि गमसु जा पुढवीकाइए ववन्जमाणस्स' तेना नवे गभेोभां के प्रभाशेतु अथन પૃથ્વીકાયિકામાં ઉત્પન્ન થનારા અસુરકુમારેાના સંબધમાં કહેવામાં આવ્યુ ́ છે. એજ પ્રમાણેનું કથન કહેવુ જોઈ એ. અર્થાત્ પરિમાણુ વિંગેરે દ્વારા સબધી થન જે પ્રમાણે પૃથ્વીકાયકામાં ઉત્પન્ન થનારા અસુરકુમારાના નવ ગમેામાં પહેલાં કરવામાં આવી ગયું છે. એજ પ્રમાણેનુ કથન સ'ની પંચેન્દ્રિયતિય ચ ચૈનિકમાં ઉત્પન્ન થવાવાળા આ અસુરકુમારાના નવે ગમામાં પશુ પિરમાણુ विगेरे द्वारानु' स्थन डेवु लेखे. 'एव जाब ईसाणदेवस्य तद्देव लद्धी' असुરકુમારના નવ ગમાના કથન પ્રમાણે જ સન્ની પચેન્દ્રિયતિય ચ ચેાનિકામાં भ० ४२
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy