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________________ प्रमेयश्चन्द्रिका टीका श०२४ ३.२० सू०५ मनुष्येभ्यः प. तिरश्चामुत्पातः ३१३ उत्कर्षेण पूर्वकोटिः पूर्व कोट्य युकः उत्कृष्टतो भवतीत्यर्थः । 'एवं अणुवंयो वि' एवं स्थितिसमानोऽनुवन्धोऽपि भवतीति । कायसंवेधस्तु 'भवादे सेगं दो भवग्गहणाई' भवादेशेन द्वे भवग्रहणे 'कालादे सेणं जहन्नेणं तिनि पलिओवपाई मासपुहुत्तमभहियाइ' कालादेशेन कायसंवेधो जघन्येन त्रीणि परपोपमानि मात पृथक्वाभ्यधिकानि 'उक्कोसेणं तिन्नि पलि प्रोवमाई पुत्र कोडीए अमहियाई उत्कृष्टत स्त्रीणि पल्योपमानि पूर्वकोटयाऽभ्यधिकानि उत्कृष्टतः कालादेशेन कायसंवेधः, पूर्वकोटयधिकत्रिपल्योपमात्मको भवतीत्यर्थः । 'एवयं जाय करेज्जा३' एतावन्तं यावत्कुर्यात् एतावत्कालपर्यन्तमेव तिर्यग्गति मनुष्पगति सेवेत तथा एतावत्काल पर्यन्तमेव उभयगतौ गमनागमने कुर्यादिति तृतीयो गमः ३। चतुर्थ पञ्चम पष्ठ गमान दर्शयन्नाह-'सो चेव अप्पणा' इत्यादि। 'सो चेव अप्पणा जहन्नकालहिईयो में उत्पन्न नहीं होता है । एवं उत्कृष्ट से स्थिति 'पुत्रकोडी एक पूर्व.. कोटि रूप है। 'एवं अणुबंधो वि' इसी प्रकार से स्थिति के जैसा ही अनु पंध होता है। काय संवेध 'भवादेसेणं दो भवग्गहणाइ' भय की अपेक्षा दो भवों को ग्रहण करने रूप है और 'कालादेसेणं' फाल की अपेक्षा यह 'जहन्नेणं तिन्नि पलिओवमाइ मासपुखत्तमभहियाई' जघन्य से मासपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम का है। 'उक्कोसेणं तिन्नि पलिमोघमाई पुवकोडीए अभहियाई उत्कृष्ट से वह कायसंवेध पूर्वकोटि अधिक तीन पल्यापम का है । 'एवइयं जाव करेज्जा' इस प्रकार से वह जीव इतने काल तक नियंग्गति का और मनुष्यगति का सेवन करता है। तथा इतने कालतक ही वह उस गति में गमनागमन करता है। ऐसा यह तृतीयगम है। अव सत्रकार चतुर्थ पंचम एवं षष्ठ गा को दिखलाने के लिये ये योनिमा 4-1 थता नथी भने थी स्थिति 'पुवकोंडी' में 4 टि ३५ २. 'एवं अणुबयो वि' मा प्रमाणे भेटले है स्थितिना थन प्रमाणे १ अनुमच पाणु थाय छे. जायसवेध 'भवादेसेण दो भवग्गहणाई अपनी अपेक्षाथी में सवार प्रहाय ४२५। ३५ छे भने 'कालादेसेणं' सनी अपेक्षाथी न्यथी 'जहन्नेण तिन्नि पलि भोवमाइ मासपुहत्तमभडियाई' भासपृथइव मधि ऋष्य पक्ष्य: ५५ ३५ छे 'उक्कोसेण' Gटथी ते यस वेध 'तिन्नि पलि ओवमाई पुव्वकाहीए अमहियाइ' पूqट ,अधि: त्रा पक्ष्यापमना छ. 'एवइय जाव करेज्जा' मारीत ते 94 Plean in सुश्री તિર્યંચ ગતિન અને મનુષ્ય ગતિનું સેવન કરે છે. તથા એટલા કાળ સુધી જ તે એ ગતિમાં ગમનાગમન કરે છે એ પ્રમાણે આ ત્રીજે ગમ કહ્યો છે. હું ९२ सूत्र४१२ याथा, पायमा मन छ भने मला माद 'सो चेव' भ०४०
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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