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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ ३.२० सू०५ मनुष्येभ्यः प. तिरश्चामुत्पातः ३०५ इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'संखेज्जरासाउय पन्निमणुस्सेहितो उबवज्जति' संख्येयवर्षायुष्कसंज्ञिमनुष्येभ्य आगत्य पञ्चेन्द्रिातिर्यग्योनिकेषु उन्पधन्ने 'नो असंखेज्जवासाउयमन्निमणुस्से हितो उववज्जति नो असंख्येश्वर्षायुष्कसंक्षिमनुष्येभ्य आगत्योत्पद्यन्ते असंख्यातवर्षायुपो मनुष्या देवगवावेोत्पद्यन्ते न तु कथमपि तिर्यग्योनाविति । हे भवन ! 'जा संखेनवामाउयसन्निमणुस्सेहितो उपवनंति' यदि संख्येयवर्धायुष्मसंज्ञिमनुष्येभ्य आगत्योत्पद्यन्ते तदा-'कि पजत्तसंखेन्जवासाउय सन्निनणुस्लेहिनो उववज्जति' किं पर्याप्तसंख्येयवर्षायुष्मसंज्ञिमनुष्येभ्यागन्योत्पद्यन्ते अथवा-'अपज्जत्त. संखेज्जवासाउयसन्निमणुस्से हितो उपवनंति' अपर्याप्तसंख्येयवर्षायुष्कसंज्ञिमनुष्येभ्य आगत्योत्पयन्ते ? इति प्रश्नः । अगदानाह-'मोयमा' इत्यादि. 'गोयमा' उत्पन्न होते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं-'गोयमा! हे गौतम! 'संखेज्जवासा उयसन्निमनुस्से हितो उपवज्जति' वे संख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञीमनुष्यों से आकर के उत्पन्न होते हैं'नो असंखेज्जवासाउय.' असंख्यातवर्ष की आयुवाले मनुष्यों से आकरके उत्पन्न नहीं होते हैं। क्योकि असंख्यावर्ष की आयुवाले युगलिक मनुष्य मरकर देवगति में ही उत्पन्न होते हैं अन्यत्र नहीं। - अब इम पर पुनः गौतम प्रभु ले ऐसा पूछने हैं-'जा संखेन्जवानाउय सणिमणुस्सेरितो उववज्जति' हे भदना ! यदि वे संख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी मनुष्यों से आकरके उत्पन्न होते हैं तो क्या वे पर्याप्त संख्यातवर्ष की आयुशाले मनुष्यों से आकरके उत्पन्न होते हैं ? अथवा अपर्याप्त संख्यातवर्ष की ओयुवाछे मनुष्यों से आकर के उत्पन्न होते मा प्रशन उत्तरमा प्रभु गौतमस्वामीन ४ छ -'गोयमा !' गौतम। 'संखेज्जवासाउयसन्निमनुस्से हितो उपवनंति' तेव्या सध्यात पनी माय. ध्यवाणा सभी मनुष्योमाथी मान उत्पन्न थाय छे. 'नो असंखेजवासाउय.' અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા મનુષ્યોમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થતા નથી. કેમકે અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા યુગલિક મનુબે મરીને દેવગતિમાં જ ઉત્પન્ન થાય છે બીજે નહીં આ સંબંધમાં હવે ગૌતમસ્વામી ફરીથી प्रभुने छ छ है-'जइ खेजबासाउयसन्निमणुस्सेहितो उज्जति'. ભગવન જે સંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા મનુષ્યોમાંથી આવીને તેઓ ઉત્પન્ન થાય છે, તે શું તેઓ પર્યાપ્ત સંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા મનુષ્યમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? કે અપર્યાપ્ત સંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા . .
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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