SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 313
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ. २००४ सं. पं. ति. तो पञ्चेन्द्रियत्वेनोत्पातः २९५ उत्कृष्टकालस्थितिकः पश्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकजीवः जघन्यकालस्थितिकेषु पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेषु उत्पन्नो भवेतदा- 'एस चेत्र वत्तव्यया' एपेव पूर्वोक्तव वक्तव्यता ज्ञातव्या पूर्वापेक्षया यद्वैलक्षण्यं तद्दर्शयति- 'नवरं' इत्यादिना । 'नवर' कालादेसेणं जहनेणं पुचकोडी अंतोमुत्तममहिया' नवर- केवल मिदमेव वैलक्षण्यं यत् काला-देशेन जघन्येन पूर्वकोटिरन्तर्मुहूर्त्ताभ्यधिकाः 'उक्कोसेणं चत्तारि पुव्त्रकोडीओ चर्हि तोमुहुतेहिं अमहियाओ' उत्कर्षेण चतस्रः पूर्व कोटयश्चतुर्भिरन्तर्मुहूरभ्यधिका इत्यष्टमी गमः ८ । 'सो चेव उक्कोसकाल डिइएस उवन्नो' स एव सब्ज्ञिपश्ञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक एवं उत्कृष्ट कालस्थितिकपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेषु उत्पन्नो भवेत् तदा - 'जहन्नेणं तिपलिओ मट्ठिएसु' जघन्येन त्रिपल्योपमस्थितिकेषु 'सो चेव जहनकालट्ठिएस उचवन्नो' यदि वही उत्कृष्ट कालकी स्थितिवाला संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव जघन्य काल की स्थितिवाले पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकों में उत्पन्न होता है तब 'एस चैव वक्तव्वया' यहां पर भी यही पूर्वोक्त वक्तव्यता कह लेनी चाहिये । परन्तु 'नवरं कालादेसेणं जहन्नेणं पुव्वकोडी अंतोमुहुत्तमम्भहिया' काल की अपेक्षा यहाँ कायसंवेध जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त्त अधिक पूर्वकोटि का है और 'उक्कोसेणं चत्तारि पुचकोडीओ, चउहिँ अतोमुहतहिं अमहियाओ' उत्कृष्ट से वह चार अन्तर्मुहूर्त्त अधिक चार पूर्वकोटि का है । यही विशेषता पूर्व वक्तव्यता की अपेक्षा इस आठवे गम में है ॥८॥ 'सो चेव उक्कोसका लट्ठिएसु उबवन्नो' यदि वही संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव जब उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले पञ्चेन्द्रियतिर्यग्यो - 'सो चेव जहन्नका लट्ठिइएसु उववन्नों' ले ते उत्सृष्टनी स्थितिवाणी सज्ञी પચેન્દ્રિયતિય ચ જીવ જઘન્યકાળની સ્થિતિવાળા સજ્ઞી પચેન્દ્રિયામાં ઉત્પન્ન थाय छे, त्यारे 'एस चेव वक्तव्वया' मडियां या पडेसा उडेल स्थन प्रभाथेनु उधन ४ महेवु लेहये, परंतु 'नवरं कालादेसेणं जहन्नेणं पुव्वकोडी अंतोमु· हुत्तमम्भहिया' 'अजनी अपेक्षाथी अडियां हायसं वेध धन्यथी थे तभुहृत अधि पूर्व अटिना हे भने 'उकोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ, चाहिं अंतोमुहुत्तेहिं अव्महियाओ' Gत्सृष्टथी ते यार अंतर्भुहूर्त अधिक यार पूर्व मेटिना છે. એજ આ કથનમાં વિશેષ પશુ છે. એ રીતે આ આઠમા ગમ કહ્યો છે. ૮ सा चैव उक्कास्रकालट्ठिएस उववन्नेा' ले थे संज्ञी यथेन्द्रियતિય ચ ચેાનિવાળા જીવ જ્યારે ઉત્કૃષ્ટકાળની સ્થિતિવાળા સન્ની પંચેન્દ્રિયમાં इत्युन्न थाय छे, त्यारे ते 'ज्ञहण्णेणं तिपलिओ मट्ठिइपसु' ४धन्यथी
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy