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________________ १२२ . भगवतीस्त्रे ___ अथ संज्ञिमनुष्यमधिकृत्य कथ्यते 'जह सन्निमणुस्से हितो' इत्यादि, 'जइ सलिमणुस्सेहितो उववज्जति' यदि संज्ञानुष्येभ्य उत्पद्यन्ते संज्ञिमनुष्येभ्यः सकाशादागत्य यदि पृथिवीकायिकेषु उत्पद्यन्ते तदा-'किं संखेज्जवासाउयसन्नि मणुरसेहितो उववज्जति' कि संख्येयवर्षायुष्कसंज्ञिमनुष्येभ्य आगत्योत्पद्यन्ते अथवा-'असंखेज्जासाउयसन्निमणु सेहितो उववजति' अथवा-असंख्येयवर्षायुष्कसंज्ञिमनुष्येय आगत्योत्पद्यन्ते इति प्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'संखेज्जवासाउप सन्निपणु सेहितो उववज्जति' संख्येयवर्षायुष्कसज्ञिमनुष्येभ्य आगत्योत्पद्यन्ते 'णो असंज्जवासाउयसन्निमणुस्सेहितो उववज्जंति' नो-न तु असंख्येयवर्षायुष्कसंज्ञिमनुष्येभ्य आगत्योत्पद्यन्ते — अब संज्ञी मनुष्यों का अधिकार कहते हैं 'जइ सनि०' इत्यादि। यदि हे भदन्न ! संज्ञी मनुष्यों से आकर के जीव पृथिवीकायिकों में उत्पन्न होता है तो क्या संख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी मनुष्यों में से आकरके जीव पृथिवीकायिकों में उत्पन्न होता हैया असंख्यात वर्षकी आयुवाले संज्ञी मनुष्यों से आकरके जीव पृथिवीकायिकों में उत्पन्न होता है ? यही प्रश्न-'कि संखेज्जवासाउयसंन्त्रिमणुस्सेहिंतो उववज्जति' असंखेज्जवासाउय सन्निमणुलेहितो उववज्जति' इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकट किया गया है। इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं 'गोयमा! हे गौतम! 'संखेज्जवासाउयसन्निमणुस्सेहितो उववज्जंति' संख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी मनुष्यों से आकरके जीव पृथिवीकायिकों में उत्पन्न होता है किन्तु 'णो असंखेज्जवासाउथ सन्निमणुस्सेहितो उववज्जति' वे सज्ञि मनुष्यन अधि॥२ ४ामा भाव छ. 'जइ सन्नि' त्या . હે ભગવન જે સંજ્ઞી મનુષ્યમાંથી આવીને જીવ પૃથ્વીકાયિકામાં ઉત્પન્ન થાય છે, તે શું તે સંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા સંજ્ઞી મનુષ્યમાંથી આવીને જીવ પૃથ્વીકાયિકમાં ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા-અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા સંજ્ઞી મનુષ્યમાંથી આવીને જીવ પૃથ્વીકાયિકમાં ઉત્પન્ન થાય છે ? આજ પ્રશ્ન "कि संखेनवासाउयसन्निमणुस्सेहिंतो उववन्जंति असंखेन्जवासाउयसंन्निमणुस्सेहितो उवदजति' मा सूत्रपा४थी प्रगट ४३८ छे. या प्रश्न उत्तरमा प्रभु गौतमसाभार ४. छ-'गोयमा ! 8 गौतम । 'सन्निमणुस्सेहितो उववज्जति' સંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળી સંજ્ઞી મનુષ્યમાંથી આવીને જીવ પૃવીકાયિभांपन्न थाय छे. 'णो सखेज्जवासाउयसन्निमणुस्सेहिं तो उववज्जति' असा
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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