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________________ [ भगवतीसूत्रे ५० चत्वारि गत्यूतानि 'ठिई महनेणं अंतोमुहुतं' स्थितिर्जघन्येन अन्तर्मुहूर्त्तम् 'उको सेण 'मासा' उत्कर्षेण च पण्मासाः जघन्योत्कृष्टाभ्यामन्तर्मुहूर्तपण्मासममाणा स्थितिश्चतुरिन्द्रियजीवानामिति । ' एवं अणुबंधो वि' एवमेव-स्थितिवदेव जघ - न्योत्कृष्टाभ्यामन्तर्मुहूपमासममाणोऽनुबन्धो भवति चतुरिन्द्रिय जीवानामिति । 'चत्तारि इंदियाणि' चत्वारि इन्द्रियाणि - स्पर्शनरसनत्राणचक्षूंपि भवन्ति चतुरिन्द्रिय जीवानामिति । 'सेसं तं चेव' शेषम् - अवगाहना स्थित्यनुबन्धेन्द्रियादिभिन्नम् उपपातपरिमाणादिद्वारजातं तदेव यदुद्धीन्द्रियत्रीन्द्रियप्रकरणे कथितम् । कियत्पर्यन्तं द्वीन्द्रियप्रकरणपठि तथा शरीरावगाहनादिकं वक्तव्यं तदाह- 'जाब' इत्यादि, 'जाग नवमगमए' यावदूनवमगमके, 'काला देसेणं जहन्नेणं बावीस वाससस्साई छहिं मासेहिं अमहियाई' फालादेशेन - कालापेक्षण जघन्येन द्वात्रिशतिर्वर्षसहस्राणि षहभिर्मासैरभ्यधिकानि कालापेक्षया जघन्यतः कायसंवेध कोश प्रमाण है । 'ठिई जहन्नेणं अंतोमुहतं उचकोलेण यच्छम्मासा' स्थिति जघन्य ले एक अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट ले छह मास की है । 'एवं अणुबंधो वि' स्थिति के जैसा अनुबन्ध भी जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त्त का और उत्कृष्ट से ६ लाख पा है । इन्द्रिय द्वार में इन चौहन्द्रिय जीवों के स्पर्शन, रसना घ्राण और चक्षु ये चार इन्द्रियां होती है।' सेमंतं प्येव' इनके अतिरिक्त अर्थात् अवगाहना स्थिति, अनुबन्ध और इन्द्रिय के सिवाय और सब उपपात परिमाण आदि द्वार सब द्वीन्द्रिय तेइन्द्रिय के प्रकरण में कहे गये अनुसार ही है । यहाँ नौवें गम में 'कालाई सेणं जहन्नेणं बावीस वास सहरसाई छहिं मासेहिं महियाई' काल की अपेक्षा जघन्य से छह मास अधिक २२ हजार तर्तनी छे, अने सुष्टथी छ भासनी छे. 'एवं अणुबंधो वि' स्थिति प्रमाणे अनुमध य જાન્યથી એક ઋતમુહૂતના અને ઉત્કૃષ્ટથી છ માસના છે. ઇન્દ્રિય દ્વારમાં श्री थार इन्द्रियवाजा लवाने स्थर्शन, रसना (अ) प्राणु (ना४) भने यक्षु (नेत्र) मायार न्द्रियेो होय छे. 'सेस तं चेव' मा स्थन शिवाय कोटले - અવગાહના સ્થિતિ, અનુમધ અને ઈંદ્રિયદ્વારના કથન શિવાયનું ખાકીનુ એટલે કે ઉપપાત પરિમાણુ વિગેરે દ્વારા સબંધીનુ કથન એ ઇન્દ્રિય અને ત્રણ ઇંદ્રિયવાળા જીવના પ્રકરણમાં કહ્યા પ્રમાણે જ સમજવું. અહિંયાં નવમા ગમમાં 'कालापैसेणं बावीस वासहरसाई छहि मासेहि अमहियाहू' अजनी अपेक्षा मे मुहुत्त उक्कोसेण यच्छ्म्मासा' स्थिति धन्यथी मे
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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