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________________ - ६३८ भगवती सूत्रे स्थिति संवेधं च जानीयात् स्थिति संवेधं च नागकुमाराणां वदेत् । 'सेसं तं चेत्र' शेषम्-स्थितिकायसंवेधातिरिक्तं सर्वमपि उत्पादपरिमाणादिकम् असुरकुमारवदेव नागकुमाराणां ज्ञातव्यमिति ९ । अथ मनुष्यमधिकृत्याह - 'जइ मणुस्लेहिंतो उववज्जं ति' यदि मनुष्येभ्य आगत्य नागकुमारावासे उत्पद्यन्ते तदा- 'किं सन्निमणुस्से हिंतो उत्रवज्रंति असन्निमणुस्सेर्हितो वा उववज्जंति' किं संज्ञिमनुष्येभ्य आगत्य नागकुमारावासे उत्पद्यन्ते अथवा असंज्ञिमनुष्येभ्य आगत्य नागकुमारावासे उत्पद्यन्ते इति प्रश्नः । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'सन्निमणुस्से हिंतो उबवज्जति' संज्ञिमनुष्येभ्य कहनी चाहिये, 'नवर' नागकुमारडिङ्ग संवेह च जाणेज्जा' परन्तु नागकुमारों की स्थिति और संवेध में पूर्वोक्त कथन से अन्तर आता है । वह कह देना चाहिये 'सेतं तं चेव' इसके अतिरिक्त और सब कथन उत्पाद परिमाण आदि द्वार में असुरकुमारों के जैसा ही नागकुमारों का जानना चाहिये । अब सूत्रकार मनुष्य को लेकर प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'जइ मणुस्से हितो ववज्जंति' यदि मनुष्यों से आकरके हे भदन्त' जीव नागकुमारावास में उत्पन्न होते हैं तो क्या वे 'सन्निमणुस्सेहिंतो उवचज्जंति असन्निमणुस्सेहिंतो उबवज्जंति' संज्ञी मनुष्यों से आकरके वहां नागकुमारावास में उत्पन्न होते हैं या असंज्ञी मनुष्यों से आकरके वे वहां नागकुमारामान में उत्पन्न होते हैं? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं - गोयमा । કરવામાં આવ્યુ છે, એજ રીતનું કથન અહિયાં પણુ નાગકુમારોના संभाषभां चक्षु सभल सेवु 'नवरं नागकुमारट्टिइ' संवेह च जाणेज्जा' પરંતુ નાગકુમારોની સ્થિતિ અને સ ંવેધમાં પહેલાના કથન કરતાં અંતર જુદાपालु छे.- सेसं तं चेत्र' मा उथन शिवाय माडीतुं तमाम उथन उत्पाद परि માણુ વિગેરે દ્વારોમાં અસુરકુમારના કથન પ્રમાણે જ નાગકુમારોનું કથન સમજવું हुवे सूत्रार भनुष्योना सधमां प्रभुने येवु' पूछे छे - 'जइ मनुस्सेहि' तो उवव તિ. હે ભગવન્ ! મનુષ્ચામાથી આવીને જો જીવ નાગકુમારોના આવાસમાં उत्पन्न थाय छे, ते शु' तेथे 'सन्नि मणुस्सेहि तो उववज्जंति' असन्निमणुस्से हि तो वववज्जंति' स ंज्ञी भनुष्याभाथी खावीने नागकुमारोमां उत्पन्न थाय छे -असज्ञी મનુષ્યેામાંથી આવીને ત્યાં-નાગકુમારાવાસમાં ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના उत्तरभां अलु ४डे छे - 'गोयमा । सन्निमणुस्सेहितो उववज्जंति' डे गौतम !
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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