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________________ ६२०. भगवतीसूत्र हिती उववज्जति' यदि संक्षिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य मागत्य इमे नागकुमारस्वेन नागकुमारावासे समुत्पद्यन्ते तदा-'किं संखेजबासाउयसन्निपंचिंदियतिरिक्ख. जोणिएहितो उववज्जति' कि संख्येयवर्पायुष्कसंज्ञिपश्चन्द्रियतिर्यग्योनिके य आगत्य उत्पद्यन्ते, अथवा-'असंखेज्जवासाउयसनिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो उवचज्जति' असंख्येयवर्षायुष्कसंज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य आगत्योत्पधन्ते इति प्रश्नः। भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'संखेज्जवासाउयसनिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति' संख्येयवायुष्क संक्षिपञ्चेन्द्रि. यतिर्यग्योनिकेभ्योऽपि आगत्योत्पद्यन्ते तथा-'असंखेज्जवासाउयसन्निपंचिंदियतिरिक्खनोणिएहितो उववज्जति' असंख्येयवर्षायुष्कसंक्षिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्योऽप्यागत्य उत्पधन्ते इत्युत्तरम् । 'असंखेन्जवासाउयसन्निपंचिंदियतिरिक्तजोणिएणं भंते !' असंख्येषवर्षायुष्कसं शेपश्चन्द्रियतिर्यग्योनिका खलु भदन्त ! 'जे पचिदिय तिरिक्खजोगिएहितो उवयजति है भदन्त ! यदि नागकुमार संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चों में से आकरके उत्पन्न होते हैं तो क्या वे 'संखे. -एजबासाउय' 'असंखेज्जवासाउय.' संख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी पश्चेन्द्रिय तिर्यश्चों से आकार के उत्पन्न होते हैं ? अथवा असं. ख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी पश्चेन्द्रिय तिर्यों से आकरके उत्पन्न होते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं-'गोयमा' हे -गौतम ! 'संखेज्जवासाउय उववति' असंखेज्जवासाउय. उवधज्जंति' वे संख्यात वर्ष की आयुवाले सज्ञी पश्चेन्द्रिय तिर्यश्चों से आकारके भी उत्पन्न होते हैं और असंख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चों से आकर के भी उत्पन्न होते हैं। अब गौतम प्रभु से पुनः ऐसा पूछते हैं-'असंखेज्जवासाउयसन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिएणं "योमाथी मावी Gत्पन्न थाय छ, तो शुतमा 'संखेज्जवासाय०' असंखेखिजवासाउय०' सभ्यात नी मायुष्यवाणा सज्ञी पयन्द्रिय तिय यामाथी -આવીને ઉત્પન્ન થાય છે કે-અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિયતિયામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે -'गोयमा ' गीतम! 'संखेज्जवासाउय० असंखेज वासाउय० उव० तमे। સંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે તથા અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યમાંથી આવીને પણ ઉત્પન્ન થાય છે. હવે ગૌતમસ્વામી પ્રભુને ફરીથી એવું પૂછે છે -'असंखेज्जवासाउय सन्निपचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते !' से लगपन्
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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