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________________ प्रमेषचन्द्रिका टीका श०२४ उ.३ सू०१ नागकुमारदेवस्योत्पादादिकम् ६१५ ज्जंति' नागकुमारा:-भवनपतिदेवविशेषाः खलु भदन्त ! केभ्य: स्यानेभ्य आगत्य नागकुमारावासे उत्पद्यन्ते 'मि नेरइएहितो उववज्जति' कि नैरयिकेभ्य आगत्योस्पद्यन्ते अथवा 'तिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति' तिर्यग्योनिकेभ्य आगत्योत्पयन्ते, अथवा-'मणुस्सेहिंतो उववज्जति' मनुष्येभ्य आगत्योत्पद्यन्ते, यद्वा 'देवेहिंतो उपवनंति' देवेभ्य आगत्योत्पधन्ते इति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' ! 'नो नेरइएहितो उपवज्जति' नो-नैव नैरयिकेभ्य आगत्य नागकुमारावासे उत्पधन्ते किन्तु 'तिरिक्खजोणिएहितो उपवज्जति तिर्यग्योनिकेभ्य आगत्योत्पद्यन्ते तथा-'मणुस्सेहितो उववज्जति' मनुष्येभ्य आगत्योत्पद्यन्ते 'नो देवेहितो उववज्जति' नो देवेभ्य उत्पद्यन्ते हे गौतम ! ये नागकुमारत्वेन नागकुमारावासे समुत्पद्यन्ते, ते न नैरपिकेभ्य आगत्य उववज्जति' हे भदन्त ! भवनपति देव विशेष जो नागकुमार हैं वे कहां से आकर के उत्पन्न होते हैं ? 'कि नेरहएहितो उववज्जति' क्या नैरयिकों से आकर के उत्पन्न होते हैं ? अथवा-तिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति' तियश्चों से आकर के उत्पन्न होते हैं ? अथवा 'मणुस्सेहितो उववज्जति मनुष्यों से ओकरके उत्पन्न होते हैं ? अथवा 'देवेहितो उवपति ' देवों से आकर के उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोयमा' हे गौतम ! 'णो णैरहएहितो उववज्जति, वे नैरयिकों से भाकरके उत्पन्न नहीं होते हैं किन्तु 'तिरिक्ख जोगिएहितो उववति' तियश्चों से आकरके उत्पन्न होते हैं, और 'मणुस्सेहितो उववज्जति' मनुज्यों से आकरके उत्पन्न होते हैं, हाँ, वे 'णो देवेहितो उववज्जति' देवोंसे आकरके भी उत्पन्न नहीं होते हैं, हे गौतम! जो जीव नागकुमारों की पर्याय ભગવન્ ભવનપતિદેવ વિશેષ જે નાગકુમારે છે. તેઓ કયાંથી આવીને ઉત્પન્ન थाय छ ? 'कि' नेरइएहि तो उववजाति' शु नैयिाथी मावान 4-1 थाय छ ? अथवा 'तिरिक्खजोणिएहितो नववज्जति' तिय य योनि-inी मावीन उत्पन्न थाय छ १ अथवा 'मणुस्सेहितो उववज्जति' मनुष्यामांथा मावान उत्पन्न थाय छ १ अथवा 'देवेहितो उववज्जति' हेवामाथी मावीर अस्पन्न थाय. छ१ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु छ है-'गोयमा गोतम! 'णा गेरइएहितों उववजूति' तमा नेपामाथी मावीत. पन यता नथी. परंतु 'तिरिक्ख. जोणिएहितो उववज्जति तिय यामाथी मावीन. Surन थाय छे. 'मणुस्से हितो उववज्जति' भनुष्यामांथा भावान पY Gपन्न थाय छे. तेमा 'णा देवेहितो उवन्जंति' हवामाथी भावान ५५ अपन्न यता नथी. 1 गौतम! २०१
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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