SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 616
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६९० भगवती 'केवtयकाल द्विइरस उत्रवज्जेज्जा' कियत्कालस्थितिकेषु असुरकुमार प्रत्यतुम् हे भदन्त ! पर्याप्तसंख्येययर्पायुष्कसंज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिको जीवोऽसुरकुमारपूत्प त्तियोग्यो विद्यते स खलु भदन्त । कियत्कालस्थितिकेषु समुत्पद्यते इति प्रश्नः । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेर्ण दसवाससहस्स farey' जघन्येन दशवर्षसहस्रस्थितिकेषु असुरकुमारेंषु उत्पद्यते इति क्रियया संम्बन्धः, 'उक्को सेणं साइरेगसागरोवमहिहएस उवज्जेज्जा' उत्कर्षेण सातिरेकसागरोपमस्थितिकेषु समुत्पच्यते, सातिरेकसागरोपम स्थितिकेषु इति कथनं बलीन्द्रनिकायमाश्रित्यावगन्तव्यम् हे गौतम | पर्याप्त यावत् तिर्यग्योनिको जघन्येन दशवर्षसहस्र स्थितिकासुर कुमारेषु तथोत्कृष्टतः सातिरेकसागरोपमस्थितिकासुरकुमारेषु समुत्पद्यते इत्युत्तरम् । 'ते णं भंते । जीवा एगसमपुर्ण केवइया उववज्जति' ते खलु भदन्त ! जीवा एकसमयेन कियन्त उत्पद्यन्ते इति प्रश्न:, 'उत्तरमाह-' एवं एएसि' इत्यादि, एवं एएसि रयणपभापुढवी गमसरिसा पत्र गमगा है, वह कितने काल की स्थितिवाले असुरकुमारों में उत्पन्न होना है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा ।' हे गौतम ! ' जहन्नेणं दसवास'सहस्स' वह जघन्य से दश हजार वर्ष की स्थितिवाले असुरकुमारों में और उत्कृष्ट से 'साइरेग सागरो०' सातिरेक सागरोपम की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है । यहां जो 'सातिरेक सागरोपम की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है' ऐसा कहा गया है, वह बलीन्द्र निकाय को आश्रित करके कहा गया है। अब गौतम पुनः प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'ते णं भंते! जीवा एगसमएर्ण केवइया उव० ' हे भदन्त ! ऐसे वे जीव एक समय में वहां कितने उत्पन्न होते हैं ? तो इसके उत्तर में प्रभुने ऐसा कहा है कि 'एवं एएसिं रयणप्पभा पुढवीચેાગ્ય છે. તેા તે કેટલા કાળની સ્થિતિવાળા અસુરકુમારેશમાં ઉત્પન્ન થાય छे ? या प्रश्नना उत्तरमा अलुछे - 'गोयमा ! हे गौतम । जहन्नेणं दखवास सहरस०' ते धन्यथी इस डेन्जर वर्षांनी स्थितिवाजा असुरकुमारीभां म उत्सृष्टथी 'साइरेग सागरो०' सातिरेङ सागशेषभनी स्थितिवाजा असुरકુમારેશમા ઉત્પન્ન થાય છે. અહિયાં જે સાતિરેક સાગરેાપમની સ્થિતિવ,ળા 1અસુર કુમારામાં ઉત્પન્ન થાય છે' એવું કહ્યુ છે, તે ખન્નીદ્રનિકાયના આશ્રય हरीने उछु छे. डवे गौतभस्वामी पुनः उसुने मे पूछे छे है- 'देणं भंते जीवा एक्सएण केवइया उ१०' हे भगवन् मेवा ते वो समयमां त्यां डेटला ઉત્ત્પન્ન થાય છે? તે આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુએ ગૌતમસ્વામીને આ
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy