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________________ भगवतीने याई' कालादेशेन-कालापेक्षया जघन्येन त्रीणि पल्पोपमानि दशभिपसहरभ्य. धिकानि 'उकोसेणं छप्पलिओबमाई उत्कर्पण प-पल्योपमानि 'एवइयं नाव करेज्जा' एतावन्तं यावत्कुर्यात् एतावत्कालपर्यन्तं तिर्यग्गतिम् अमुस्कुमारगति च सेवेत तथा एतावत्कालपर्यन्तमेव तिर्यग्गतो असुरकुमारगतौ च गपनागमने कुर्यादित्येवं स्थित्यनुबन्धकायसंवेधेयु कैलक्षण्यं विद्यते एतदतिरिक्त सर्व प्रथमगमत्रदेव द्रष्टव्यमिति सप्तमो गमः समासः ॥७॥ ___अथाष्टमो गमो निरूप्यते-'सो चेत्र जहन्नकाल' इत्यादि, 'सो चेव जहन. कालहि एसु उजवन्नो' स एवासंख्यातवर्षायुष्कसंज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्यानिक एवं जघन्यकालस्थितिकासुरकुमारेपूपपन्ना, 'एस चेव वत्तच्चया' एपैच वक्तव्यता. हे भदन्त ! या स्वयम् उन्क कालस्थितिकः असंख्यातवर्षायुष्कसंज्ञिपञ्चन्द्रिगतिअधिक तीन पल्पोषम का और उत्कृष्ट से ६ पल्योपम का है, इस प्रकार वह जीव इतने कालतक उस तिर्यग्गति का और असुरकुमार गति का सेवन करता है तथा इतने ही काल तक वह उसगति में गम. नागमन करता है। इस प्रकार से स्थिति, अनुबन्ध और कायसंवेध में भिन्नता है, और बाकी का सब कथन प्रथम गम के जैसा ही है। ऐसा यह सातवां गम है। ' आठवां गम इस प्रकार से है-'सो चेव जहन्नकालटिएसु उपवन्नो' यदि वही असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक जीव जय जघन्यकाल की स्थितिवाले असुरकुमारों में उत्पन्न होने के योग्य होता है-तथ यहां पर भी यही वक्तव्यता कहनी चाहिये अर्थात ક્ષાએ જઘન્યથી દસ હજાર વર્ષ અધિક ત્રણ પાપમને અને ઉકષ્ટથી ૬ છે પાપમાને છેઆ રીતે તે જીવ આટલા કાળ સુધી તે તિર્યંચ ગતિનું અને અસુરકુમાર ગતિનું સેવન કરે છે. અને એટલા જ કાળ સુધી તે એ ગતિમાં ગમનાગમન કરે છે. આ પ્રકારે સ્થિતિ અનુબંધ અને કાયસંવેધમાં ભિન્નપણું છે. અને બાકીનું તમામ કથન પહેલા ગામમાં કહ્યા પ્રમાણે જ છે तभ सभा.. । . .. या शत सातमी, गम छ. . * । मामा गभर्नु ४थन ४२वामा मावे छ.-'सो चेव जहन्नकालदिइएमु वचन्नो' असभ्यात नी मायुष्यवाणी सज्ञी ५'यन्द्रिय तिय"य નિવાળો જીવ જઘન્ય કાળની સ્થિતિવાળા અસુરકુમારમાં ઉત્પન થવાને વ્યા છે, તે તે સંબંધમાં પણ એજ કથન કહેવું જોઈએ, અર્થાત્ જ્યારે
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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