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________________ ५६२. भगवती कालडिएस उववज्जेज्जा' कियत्काल स्थिति के पून्पयेत, उत्तरमाह - 'गोयमा' इंस्यादि, 'गोयवा' दे गौतम ! 'जह नेयं दतवास सहसडिइएस' जघन्येन दशवर्शसहस्र स्थिति के पूत्पयते इत्यग्रिमेण संन्ध, तथा-'उक्को सेणं तिपलिभोषमहिइएस उब्जेज्जा' उत्कर्षेण त्रिपल्योपमस्थिति के इत्पद्येन त्रिपल्योपमेति कथनम् देवकुर्यादिमिथुनकतिरथोऽधिकृत्य ते देवेदिमिथुनकतिरथो हि त्रिपल्योपमायुकत्वेन असंख्यातत्रयुका भवन्ति ते च देवकुर्वादिमिथुनकतिर्यश्चः स्वकी या सहामेव देवायुर्वघ्नन्तीति भावः (१) 'ते णं भंते । जीवा एगसमरणं पुच्छा' ते खलु भदन्त । जीना एकसमयेन पृच्छा हे भदन्त । ते जीवा एकसमयेन वह जीव कितने काल की स्थितिवाले भासु कुमारों में उत्पन्न होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा' हे गौतम! 'जहन्नेणं दसवासHeatre, क्कोसेणं निपलिओचम० 'ऐसा वह जघन्य से दश हजार वर्ष की स्थिति वाले असुरकुमारों में और उत्कृष्ट से तीन पुल्योपम की स्थितिवाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है । 'त्रिपत्थोपम ऐसा जो कथन है वह देवकुरु आदि भोग भूमियों के तिर्यचों को लेकर है- क्योंकि वे तीन पल्योपम की आयु वाले होने से असं रुपात वर्ष की आयु वाले कहे गये हैं । ये देव कुरु आदि के तिर्यश्व अपनी आयु के बराबर ही देवायुका बन्धकरते हैं किन्तु अपनी आयु से अधिक देवायु का बन्ध नहीं करते हैं (१) ' 'ते णं भंते ! जीवा एगसमणं पुच्छा' अब गौतमस्वामी इस सूत्रपाठ द्वारा प्रभु से ऐसा पूछते हैं-हे भदन्त । वे असंख्यात वर्ष की योग्य हाय' से णं भंते! केवइयकालट्ठिइएस ? हे भगवन् मेवा ते ब કેટલા કાળની સ્થિતિવાળા અસુર કુમારામાં ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના उत्तरभां प्रभु ४हे है है-'गोयमा !' हे गौतम ! 'जहन्नेणं दखवासस्रहस्सट्ठिइपसु, उक्कोसेणं तिपलिओम' येव। ते लव. धन्यथी, इस हुन्नर वर्षांनीસ્થિતિવાળા અસુર કુમારામાં અને ઉત્કૃષ્ટથી ત્રણ પચેાપમની સ્થિતિવાળા शेपुर' 'कुभाशभां उत्पन्न थाय छे. 'त्रिपल्योपम' यो ? उथन भ्यु देखें कुमार विगेरे लोग भूमियाना तिर्ययाने सधने छे.-भडे तेथे ત્રણ પટ્ચાપમની આયુષ્યવાળા હાવાથી અસંખ્યાત' વર્ષની આયુષ્યવાળા मडेस छे. आा हेव५३. विगेरेना तिर्यथा पोतानी - आयुनी नभन हेवायुनी धरे छे. (१) 'ते णं भसे जीवा एगसमरणं पुच्छा' हवे, गौतमस्वाभी या सूत्रधारथी' પ્રભુને એવું પૂછે છે કે હે ભગવન સખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા સની
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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