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________________ ५३४ भगवती इति । 'नवरं नेरइयठिइं य कायसंवेहं च जाणेज्जा' नवर' नैरयिकस्थिति च काय. संवेधं च जानीयात् चतुर्थ-पञ्चम-पष्टगमकेषु यथा यथा कथितं तथैव इहापि सप्तमाष्टमनवमगमेष्वपि जानीयादिति७-८-९। 'एवं जाव छटपुढवी' एवम्-शर्करा प्रभावदेव यावत् पाठपृथिवी वालुकामभात आरभ्य तमान्तपृथिवीयियासूनामेव गति चिन्तनीया । यद्यपि तृतीयपृथिवीत आरभ्य षष्ठपृथिवीपर्यन्तं द्वितीयपृथिवीवदेव विचारः कर्तव्यस्तथापि तृतीयादिपृथिव्यां पवेन्द्रियतिर्यक् प्रकरणवदेव नन आदि सम्बन्धी कथन है वह सर्व प्रथम गम के जैसा ही है । अतः जैसा कथन प्रथम गमक में कहा गया है वैसा ही कथन यहां पर भी कहना चाहिये 'नवरं नेरइयठिय कायसंवेहं च जाणेज्जा-परन्तुनैरयिक की स्थिति और कायसंवेध विचार कर यहाँ कहना चाहिये अर्थात् चौथे पांचवे छठे गमों में जैसा जैसा कहा है उसी प्रकार यहां सातवें आठवें और नौवें गमों में भी जान लेना चाहिए ७-८-९। ___एवं जाव छठ पुढवी' शर्करा प्रभा के जैसा ही यावत् तीसरी से लेकर छट्ठी पृथिली में जानेवाले मनुष्यों के सम्बन्ध में भी ऐसा ही कथन जानना चाहिये, अर्थात् घालुका प्रभा से लेकर तमा तक की पृथिवियों में जाने योग्य जीवों की गति का विचार कर लेना चाहिये, यद्यपि तृतीय पृथिवी से लेकर छट्ठी पृथिवी तक द्वितीय पृथिवी के जैसा ही विचार है, फिर भी तनीय आदि पृथिवी में पञ्चेन्द्रिय तिर्यक् के प्रकरण के जैसा एक-एक संहनन कम करना चाहिये, यही बात-'नवरं વિગેરે સંબંધી કથન છે તે સઘળું પહેલા ગમ પ્રમાણે જ સમજવું. જેથી પહેલા ગમમાં જેવું કથન કહેવામાં આવ્યું છે, તે જ પ્રમાણેનું કથન અહિયાં ५ स . अर्थात त्यांनुते सघY ४थन मडियां डी . 'नवरं नेरइयठिइ य कायसवेहं च जाणेज्जा' ५२न्तु नैयिनी स्थिति भने अयसव.. धनी पियार श२ महियां वा नसे. एवं जान छठू पुढवी' શરપ્રભાની જેમ જ યાવત્ છઠ્ઠી પૃથ્વીમાં જવાવાળા મનુષ્યના સંબંધમાં પણ એ પ્રમાણેનું જ કથન સમજવું અર્થાત્ વાલુ પ્રભાથી લઈને તમા સુધીની પૃથ્વીમાં જવાને 5 એવા જીવોની ગતિને વિચાર કરી લેવું જોઈએ, જે કે ત્રીજી પૃથ્વીથી લઇને છઠ્ઠી પૃથ્વી સુધી બીજી પૃથ્વી પ્રમાણે જ કથન છે. તે પણ ત્રીજી. વિગેરે પૃવીમાં પંચેન્દ્રિય તિર્યંચના પ્રકરણ પ્રમાણે એક એક સંહનન એ શું કરવું જોઈએ
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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