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________________ प्रमैयचन्द्रिको टीका श०५४ उ.१ सू०८ श० षष्ठपृथ्वीगतजीवानामुदिकम् ५३१ वर्ष पर्यन्तम् ‘सेस जहा-भोहियाणं' शेष यया औधिकानाम् आगाहनास्थितित्यनुवन्धैर्यदवशिष्टं लेश्यादिकं तत् सर्वं यथा औधिकप्रकरणे कथितं तथैव इहापिज्ञातव्यमिति । 'संवेहो सयो उवजुजिऊण माणिययो' संवेधो सर्वः उपयुज्य. भणितव्यः स चैवं जघन्यस्थितिको मनुष्यः औषिकेषु इत्यत्र चतुर्थगमे कायसंवेधः कालादेशेन जघन्यतो वर्ष पृथक्त्वाधिकमेकं सागरोपम् उत्कर्षेण तु वर्ष पृथक्त्वचतुष्काधिकानि द्वादशसागरोपमाणि । जघन्यस्थितिको मनुष्यो जघन्यस्थितिकेषु नारकेषु इस्यत्र पश्चमे गमे कालादेशेन जघन्येन कालत: कायसंवेधो वर्ष पृथक्त्वाधि पृथक्त्व का है। 'सेसं जहा ओहियाणं' अवगाहना स्थिति एवं अनु. बन्ध के सिवाय बाकी का और सब लेश्यादि सम्बन्धी कथन औधिक प्रकरण में जैसा कहा गया है वैसा ही यहां पर भी जानना चाहिये । 'संवेहो सम्वो उवजु जिऊण भाणियन्यो' संवेव सब -जघन्य उत्कृष्ट यहां विचार कर कहना चाहिये, जैसे कि-जघन्य स्थितिवाला मनुष्य शर्कग प्रभा के नैरयिकों में उत्पन्न होता है तो इस गम में कायसंवेध काल की अपेक्षा जघन्य से वर्ष पृथक्त्व से अधिक एक सागरोपम का है, और उत्कृष्ट से वह चार वर्षपृथक्त्व अधिक १२ सागरोपम का है, यदि जघन्य स्थिति वाला मनुष्य जघन्य स्थितिवाले नैरयिकों में उत्पन्न हो जाता है तो इस प्रकार के इस द्वितीय गम में काल की अपेक्षा जघन्य से कायसंवेव वर्षे पृथक्त्व अधिक एक जहा ओहियाण' Aq8ना, स्थिति भने मनुमध शिवाय माहीतुं भी तमाम લેશ્યા વિગેરે સંબંધીનું કથન ઔવિક પ્રકરણમાં જે પ્રમાણે કહેવામાં આવેલ छ, मेरी प्रमाणे मालियां पY समानु: 'संवेहो जहा उवज़ुजिऊण भाणियव्यो' સંવેધ અહિયાં વિચારીને કહેવું જોઈએ કેમ કે-જઘન્ય સ્થિતિવાળે મનુષ્ય શકરા પ્રભા પૃથ્વીના નૈરયિકમાં ઉન્ન થઈ જાય છે, તો આ ગામમાં કાય સંવેધ કાયની અપેક્ષાથી જઘન્યથી વર્ષપૃથફવથી વધારે એક સાગરોપમને છે અને ઉત્કૃષ્ટથી તે ચાર વર્ષ પૃથફતવ અધિક ૧૨ બાર સાગરોપમને છે. જે જઘન્ય રિથતિવાળા નરયિકમાં ઉત્પન્ન થાય તે આ રીતના આ બીજા ગમમાં કાળની અપેક્ષા એ જઘન્યથી કાયસંવેધ વર્ષ પૃથફવ અધિક એક સાગરોપમને છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી તે વર્ષપૃથકત્વ અધિક ચાર સાગરેપમાને છે
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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