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________________ ५०० भगवतीसूत्र तिते सति केषांचिन्नारकेपुत्पत्तेः तदुक्तम्-'मोहिनाणमणपज्जव आहारयसरीराणि लधूर्ण परिसाडित्ता उववज्जति' इति 'अवधिज्ञान-मनापर्यवा-ऽऽहारकशरीराणि लब्ध्वा परिशाटयित्वा 'त्यक्त्वा उपपद्यन्ते' इतिच्छाया। . संज्ञिपञ्चेन्द्रियतियग्योनिकप्रकरणे त्रीणि ज्ञानानि कथितानि इह तु चत्वारि ज्ञानानि पतिपाद्यन्ते इति वैलक्षण्यम् अतएव कथितम्-चत्वारि ज्ञानानि त्रीणिअज्ञानानि भजनया भवन्तीति । 'छ समुग्धाया केवलिमज्जा' पट्ममुद्याता वेदना कपायादिकाः केवलिसमुद्घातवर्जिता भवन्ति । 'ठिई अणुबंधो य जहन्ने] मासपुहुत्त' स्थितिरनुसन्धश्च जघन्येन मासपृथक्त्वं द्विमासादारभ्य नवमासपर्यन्तः, -मतिज्ञान, श्रुवज्ञान, अवधिज्ञान और मनापर्य ज्ञान-ये चार ज्ञान और मत्यज्ञान श्रुताज्ञान एवं विभंगज्ञान ये तीन अज्ञानं अर्थात् ये ज्ञानाज्ञान दोनों मजना से होते हैं, क्योंकि अवधि आदि ज्ञान के छूट जाने पर कितने मनुष्यों का नरकों में उत्पाद होता है। तदुक्तम्-'ओहिनाणमणपउजवाहारय सरीराणि लघृणं परिसाडित्ता उववज्जति' अवधिज्ञान मनः पर्यवज्ञान और आहारक शरीर को माप्त करके मनुष्य इनके छूट जाने पर नरक में उत्पन्न हो जाता है। संज्ञी पश्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक के प्रकरण में तीन ज्ञान कहे गये हैं, और यहां चार ज्ञान कहे गये हैं। यही उस प्रकारण से इस प्रकरण में विशेषता है इसलिये यहां कहा है कि चार ज्ञान और तीन अज्ञान ये दोनों ज्ञान अज्ञान भजनासे होते हैं । 'छ समुग्धाया केवलिवज्जा' केवलि समुद्घात को छोड़कर वेदना कषाय आदि ६ समुद्घात होते हैं। ठिईअणुबंधो य जहन्नेणं मासंपुटुतं' स्थिति और अनुबन्ध जघन्य से मास પર્યાવજ્ઞાન, અને મતિ અજ્ઞાન શ્રતાજ્ઞાન અને વિભંગ જ્ઞાન આ ત્રણે અજ્ઞાન ભજનાથી હેય છે. કેમકે-અવંધિ-વિગેરે જ્ઞ ન છૂટિ જાય ત્યારે કેટલાક भनुष्योनी न२४मा पात थाय छे. ते ४ छ-'ओहिनाणमणपज्जव आहारय सरीराणि धूर्ण पडिसाडित्ता उववज्जति' भवधिज्ञान मन:पयशान भने આહારક શરીરને પ્રાપ્ત કરીને તે છૂટિ જાય ત્યારે મનુષ્ય નરકમાં ઉત્પન્ન થાય છે. સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ યોનિકેના પ્રકરણમાં ત્રણ જ્ઞાન કહ્યા છે. અને આ પ્રકરણમાં ચાર જ્ઞાન કહેવામાં આવેલ છે. તેથી આ અપેક્ષેએ તે પ્રકરણથી આ પ્રકરણમાં ફેરફાર છે. એટલે અહીં કહેવામાં આવ્યું છે કે ચાર शोन भने त्रय भज्ञान माथी डाय छे. 'छ समुग्धाया केवलिवज्जा' पति समुद्धातन छान वना, ४षाय, विगैरे ७ समुद्धातो डाय छे. 'ठिई अणुबंधो य जहण्णेणं मासपुहत्त' स्थिति भने मनुमा धन्यथी भासपृथइव भने उकोसेणं
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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