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________________ ४५६ भगवतीस्ने 'पसाठीसाए वाससहस्सेहिं अब्भहियाओ' चत्वारिंशद्वर्प सहस्रैरभ्यधिकार, 'एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गइरागई करेज्जा' एतावत्काळपर्यन्त दीर्घापुष्कपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिको जीवो जघन्यकालस्थितिकरत्नमभानारकेषु यिया'मुरित्यष्टमो गमः ८ इति । 'उक्कोसकालहिइयपज्जत्तसंखेज्जवासाउयसन्निपंचिंदियतिरिक्खजोगिए णं भंते' उत्कृष्टकालस्थितिकपर्याप्तसंख्येयवर्षायुष्कसंक्षिपश्चन्द्रियतियग्योनिक: खल भवन्त ! 'जे भविए' यो भव्या-उत्पत्तियोग्यः उक्कोसकालहिइयरय. पप्पभापुटवीनेरइएम' उत्कृष्टकालस्थितिकरत्नमभापृथिवीसंबन्धिनैरयिकेषु 'उबज्जित्तए' उत्पत्तुम् 'से णं भंते । स खलु भन्य! जीवाः 'केवइयकालहिए सु उववज्जेज्जा' कियत्कालस्थिति केषु नैरयिकेषु उत्तधेत इति प्रश्नः। भगन्द्रिय तिर्यग्गति का और नरक पति का सेवन करता है, तथा इतने ही काल तक तिर्यश्चगति में और जघन्य स्थिति वाली नारक गति में वह गमनागमन करता है। इस प्रकार ले यह आठयां गम है। नौवाँ गम इल प्रकार से है-'डकोसकालहिइय पज्जत्त संखेज्ज. 'बालाज्य सन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते!' हे भदन्त ! जो संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव उत्कृष्ट काल की स्थितिवाला है, 'पंर्याप्त है, संख्यात वर्षायुष्क है, वह यदि उत्कृष्ट काल की स्थितिवाले रत्नप्रभा सम्बन्धी नैरयिकों में उत्पन्न होने के योग्य है तो हे भदन्त । वह 'केवइयकालडिइएस्तु उववज्जेज्जा' कितने हाल की स्थिति वाले नैरथिकों में उत्पन्न होता है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैंન્દ્રિય તિય ગતિનું અને નરક ગતિનું સેવન કરે છે. તથા એટલાજ કાળ સુધી તિય"ચ ગતિમાં અને જઘન્ય સ્થિતિવાળા નારકેની ગતિમાં તે ગામના गमन-म१२ १२ १३ छ. माश मा मामी गम छे. वे नवमा गभर्नु ४थन ४२वामां आवटे-मा प्रभारी छ:-'उक्कोसकोलद्विः इय पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसन्निपंचि दियतिरिक्खजोणिए ण भते । सगધન સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ નીવાળો જે જીવ ઉત્કૃષ્ટ કાળની રિથતિવાળે છે, પર્યાપ્ત છે, સખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળો છે; તે જે ઉત્કૃષ્ટ કાળની સ્થિતિવાળા રત્નપ્રભા પૃથ્વીના નૈરયિકમાં ઉત્પન્ન થવાને ચગ્ય છે, તે હે भगवन त 'केवइय-कालद्विइएसु उववजेन्जा' मा सनी स्थितिमा नै२थि. हमा हत्पन्न थाय छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु -गोयमा ! है
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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