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________________ ४४२ भगवतीस्त्रे एवयं कालं गइरागई करेन्जा' एतावत्कालं सेवेत, एतावत्कालं गत्यागती कुर्यात् एतावत्कालपर्यन्तं यिंगति सेवेत तथा-एतावत्कालपर्यन्तमेव तिर्यग्गतौ नारकगतौ च गमनागमने अर्यादिति चतुर्थों गमः।४। अथ पञ्चमं गममाह-'सो चेव' इत्यादि, 'सो चेव जहन्नकालडिएसु उवधन्नो' स एव जघन्यायुष्कसंज्ञिपश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिको जीव: जघन्यकालस्थिति केषु यदि उत्पन्नो भवेत् तदा-'जहन्नेणं दससहस्सटिइएसु' जघन्येन दशव सहस्त्रस्थितिकेषु नैरयिकेषु तथा-'उक्कोसेण वि दसवाससहस्सद्विइएसु' उत्कर्षेणापि दशवर्ष सहस्रस्थितिकेषु रत्नप्रभानेरयिकेषु 'उववज्जेज्जा' उत्पद्यत-उत्पत्तिमुपलभेत । ते णं भंते ते खलु भद. न्त ! जीवाः 'एगसमएणं केवइया उववज्जति' एक समयेन एकस्मिन् समये एव पम तक 'एचइयं काल सेवेज्जा उस गति का सेवन करता है और 'एवइयं कालं, गतिरागई करेज्जा' उसमें गमनागमन करता रहता है, ऐसा यह चौथा गम है। पंचम गम का कथन इस प्रकार से है-'सो चेष जहन्नकालट्ठिहएस्तु उववन्नो' हे भदन्त ! वह जघन्य काल की स्थितिवाला संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव यदि जघन्य काल की स्थिति वालों में उत्पन होना योग्य है तो यह जघन्य से प्रथम पृथिवी के दश हजार वर्ष की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो जाता है और उस्कृष्ट से भी वह उसी पृथिवीके दश हजार वर्ष की स्थिति वाले नैरथिकों में उत्पन्न हो जाता हैं, गौतमस्वामी का प्रश्न -'ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवड्या उववज्जति हे भदन्त ! वे जीव रत्न प्रभा पृथिवी के नारकों ते गतिनु सेवन ४२ छे. मने 'एवइय काल गइरागई करेजा' रक्षा કાલ સુધી તેમાં ગમનાગમન કરતા રહે છે. આ પ્રમાણેને આ ચોથે ગમ છે. वे पायमा गभर्नु थन ४२वामां आवे छे. 'सो चेव जहन्नकालद्विइएसु सववण्णा' ७ बसन् १५.यजनी स्थितिवाणे त सही पायन्द्रिय तिय"य એનિવાળે જીવ જે જઘન્યકાલની સ્થિતિવાળાઓમાં ઉત્પન્ન થવાને ચગ્ય છે તે તે જઘન્યથી પહેલી પૃથ્વીના દસ હજાર વર્ષની થિતિવાળા નૈરયિકમાં ઉત્પન્ન થઈ જાય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી તે એજ પૃથ્વીના દસ હજાર વર્ષની સ્થિતિવાળા નારકીયમાં ઉત્પન્ન થઈ જાય છે. वे गीतभस्वामी प्रभुने मे पूछे छे ?-'ते णं भंते ! जीवा एगसम एणं केवइया उववति' मग ते २लमा पृथ्वीना नाहीमा -
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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