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________________ प्रमेयसन्द्रिका टीफा श०२४ उ.१ सू०५ संक्षिपञ्चेन्द्रियतिरश्चां नारकेपूनि० ४३३ सर्वमपि चात्र ज्ञातव्यम्, अतएव कथितम्-'एवं सो चेव पढमो गमयो निरवसेसो भाणिययो' इति । कियत्पर्यन्तं प्रयमो गमोऽत्र भणितव्यः ? इत्याह-'जीव' इत्यादि । 'जाव' यावत् 'कालादेसेण' इत्यादि सेवना-गत्यागतिसूत्रं नायातितावदिति । तदेव सूत्रमाह-'कालादेसेण' इत्यादि, 'कालादेसेणं' कालादेशेनकलपकारेण कालमाश्रित्येत्यर्थः 'जहन्नेणं' जघन्येन 'दसवाससहस्साई' दशवर्षसहस्राणि 'अंतोमुहुत्तममहियाई अन्तर्मुहूर्ताम्यधिकानि-अन्तर्मुहूताधिकदशसहसवर्षपर्यन्तम्, तथा-'उक्कोसेणं उत्र्षेण 'चत्तारि पुन्यकोडीओ' चतस्त्र: पूर्वकोटयः चतुः कोटिपूर्वाणि 'चत्तालीसाए वाससहस्से हिं अमहियाओ' चत्वारिंशता वर्षसहस्रैरभ्यधिका:, चत्वारिंशत्सहस्रवर्षाधिकवत: कोटिपूर्वपर्यन्तमिति, 'एवइय -कालं' एतावन्तं कालम्-पूर्वपदर्शित कालपर्यन्तम् ‘से वेज्ना सेवेत, सज्ञिपश्चेन्द्रियं तिर्यग्योनि नारकयोनि च तथा-'एवइयं कालं गइरागई करेज्जा' एतावत्कालपर्यन्तमेव स तत्र गल्यागती-गमनागमने कुर्यादिति द्वितीयो गमः ॥२॥ अतिरिक्त और जो उपयोग आदि सम्बन्धी कथन है वह सब असंज्ञी पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक के प्रकरण में जैसा कहा गया है वैसा ही जानना चाहिये, इसी अभिप्राय को लेकर सूत्रकार ने 'एवं सो चेव पढमो गमओ निरवसेसो भाणियव्वों' ऐसा सूत्रपाठ कहा है, 'जाव काला देसेज कि जब तक कालादि को लेकर सेवना एवं गति आगति का कथन नहीं आजाता है-तष तक प्रथम गम यहां सम्पूर्ण कहलेना चाहिये, यह काल की अपेक्षा लेकर कथन इस प्रकार से है-कालं की अपेक्षा वह जघन्य से एक अंतर्मुहूर्त अधिक १० हजार वर्ष तक उस गति का सेवन करता है और उत्कृष्ट से ४० हजार वर्ष अधिक चार कोटि पूर्व तक वह उस गति का सेवन करता है और जघन्य एवं હોય છે. આ કથન શિવાયનું ઉપગ વિગેરે સંબંધીનું જે કથન છે. તે તમામ અસંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યંચના પ્રકરણમાં જે પ્રમાણે કહેવામાં આવેલ छ. तर प्रभार महियां पY सभा. मा०४ अभिप्रायथा सूत्रधार एवं सो चेव पढमो गमओ निरवसेसो भाणियव्वा' मा प्रभारी सूत्रा हो. यावत् 'कालादेसेणं' भने ते यावत् र हेश सुधी मेट या सुधी કાળ વિગેરેને લઈને સેવના અને ગતિ આગતિનું કથન આવતું નથી. ત્યાં સુધીને પહેલો ગમ અહિયાં પૂરે પૂરો સમજે. કાલની અપેક્ષાએ તે જા. ન્યથી એક અંતમુહૂર્ત અધિક ૧૦ દસ હજાર વર્ષ સુધી તે ગતિનું સેવન કરે છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી ૪૦ ચાળીસ હજાર વર્ષ અધિક ચાર કટિ પૂર્વ સુધી
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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