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________________ भगवतासूत्र 'सरीरोगाणा जहेव असन्नीणं' शरीरावगाहना यथैव असंज्ञिनाम् शरीरावगाना तेषामसंज्ञिनामित्र ज्ञातव्या । तां सूत्रएव दर्शयति ' जहन्तेर्ण' इत्यादि, जहन्नेन' जघन्येन 'अगुलस्स असंखेज्जइमार्ग' अंगुलस्यासंख्येयभागम् - अंगुलासंख्येयभागपरिमिता जघन्यावगाहना । ' उनको सेर्ण जोयणसहस्सं' उत्कर्षेण योजनासहस्रम् उत्कर्षवोऽवगाहना एकसहस्रयोजनपरिमिता पर्याप्तरूपेयवर्षायुष्कसंज्ञिपश्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकानां भवतीति । 'तेसि णं भंते! जीवाण' तेषां खल भदन्त | जीवानाम् 'सरीरगा' शरीराणि 'कि संठिया कि संस्थि नि-कीदृश1 संस्थानवन्ति 'पन्नत्ता' प्रज्ञवानि हे भदन्त । तादृशजीवानां शरीराणि किमाकारकसंस्थानविशिष्टानि भवन्तीति प्रश्नः । भगवानाह - 'गोयमा !' हे गौतम | 'छनिहसंठिया पन्नता' पविघसंस्थानानि - पविघसंस्थानवन्ति प्रज्ञप्तानि 'तं जहा' तद्यथा 'समचउरंस० निग्गोह० जाव हुंड' समचतुरस्र० न्यग्रोध० यावत् हुण्ड, नाराच संहनन वाले, नाराच संहनन वाले, अर्धनाराच संहनन वाले, कीलिका संहनन वाले, सेवार्त्त संहनन वाले 'सरीरोगाहणा जहेब अस नीर्ण' इनके शरीर की अवगाहना असंज्ञी जीवों की अवगाहना जैसी जाननी चाहिये, अर्थात् सूत्रोक्तानुसार यह अवगाहना जघन्य से इनकी अगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण होती है, और एस्कृष्ट से 'जोयणसहस्सं' एक हजार योजन की होती है । प्र० - 'तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरगा किं संठिया' 'हे भदन्त ! इन जी के शरीर किस २ संस्थान वाले होते हैं ? ४२४ ५ उ०- 'गोमा । छविहसंठिया पन्नन्ता' हे गौतम | इनके शरीर छहों संस्थान वाले होते हैं । 'तं जहा' उन छह संस्थानों के नाम इस प्रकार से है - समचरंस० निग्गोह० जाव हुंड०' समचतुरस्र संस्थान १, સહનનવાળા ૩ ધનારાચ સહનન વાળા ૪ કીલિકાસ‘હૅનનવાળા અને सेवार्त सांडुननवाजा है तेयोना शरीरैरा होय छे. 'सरीसेगाहणा जहेव असन्नीणं' તેના શરીરની અવગાહના અસ'ની જીવેાની અવગાહના પ્રમાણે સમજવી અર્થાત્ સૂત્રમાં કહ્યા પ્રમાણે તેની આ અવગાહના જઘન્યથી અાગળના असभ्यातभा भाग प्रभा होय छे, भने उत्सृष्टथी 'जोयणसहरसं' डेन्जर योजननी होय हे गौतमस्वामीने प्रश्न 'तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरंगा कि संठिया हे भगवन् ते लवोना शरीरो श्या या सस्थानवाजा होय हे १ मा अश्नना उत्तरभां अलु छे है - 'गोयमा ! छन्हिसठिया पण्णत्ता' हे गौतम! तेथेोना शरीरे। छखे अठारना संस्थानवाजा होय छे. 'तं महा' ते छमे संस्थानाना नाभी या अभाये छे. 'समचउरंस० निगोह०
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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