SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 446
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीसूत्रे प्रश्ना, हे गौतम ! ते नारकाः पर्याप्तकेभ्य एव जलचरादिभ्य आगत्य समुत्पद्यन्ते न तु अपर्याप्तकेभ्य एभ्यो जल वरादिभ्य आगत्योत्पधन्ते इत्युत्तरम् भगवत इति भावः । 'पज्जत्तसं खेज्जवासाउय समिचिदियतिरिक्खजोणिए णं भंते !' पर्याय कसंख्येयवर्पायुष्कसंक्षिपञ्चेन्द्रियतियग्योनिकः खलु भदन्त ! 'जे भविए नेरइएसु उववज्जित्तए' यो भव्यो नैरयिकेषु उत्पत्तुम् ‘से णं भंते' स खल भदन्त ! 'कइसु पुढवीसु उववज्जेज्ना' सप्ततु पृथिवीषु मध्ये कतिषु कियत्संख्यकास पृथिवीषु उत्पधेत हे भदन्त ! पर्याप्तसंख्येयवर्षायुष्फसंज्ञिपञ्चेन्द्रियजीवो यो नारकेषु समुत्पत्तियोग्यो विद्यते स कियत्संख्यकामु नारकपृथिवीषु उत्पधेत इति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' हे गौतम ! 'सत्तसु पुढवीसु उववज्जेज्जा' सप्तमु इति सप्तस्वपि रत्नप्रभादिपृथिवीषु नारकसंपन्धिषु उत्पोत, 'तं जहा' तघया'रयणप्पभाए जाव अहे सत्तमाए' रत्नममायां यावत् अधः सप्तम्याम् यावत्पदेन शर्करामभा पङ्कममा-बालुकामभा-तमःपमानां संग्रहो भवति तथा च रस्न है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं-हे गौतम ! वे नारक पर्याप्तक जलचर आदिकों से आकर के उत्पन्न होते हैं, अपर्याप्तक जलचरादिकों से आकर के उत्पन्न नहीं होते हैं। अप गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसन्नि पंचिदियतिरिक्खजोणिए णं भंते । हे भदन्त ! पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाला, संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीव जो कि नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य है वह कितने नारक पृथिवियों में उत्पन्न होता है? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! 'सत्ता पुढवीसु उववज्जेज्जा' वह सातों ही पृथिवियों में उत्पन्न हो सकता है। 'तं, जहा-'रयणप्पभाए जाव अहे सत्तमाए' जैसे वह रत्नप्रभा ગૌતમસ્વામીને કહે છે કે-હે ગૌતમ ! તે નારકે પર્યાપ્ત જલચર વિગેરેમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે, અપર્યાપ્તક જલચર વિગેરેમાંથી આવીને ઉપન થતા નથી. वे गौतमस्वामी प्रभुने मे पूछे.छे -'पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसन्नि पंचिंदियतिरिक्खजोणिए ण मते ! भरावन पर्याप्त सभ्यात वर्षनी भायવાળ સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ નિવાળા જીવ કે જે નરયિકમાં ઉત્પન્ન થવાને ચગ્ય છે, તે કેટલી નરક પૃથ્વિીમાં ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभु ४ छे -'गोयमा ! 8 गौतम ! 'सत्तसु पुढवीसु उववज्नेज्जा' तेसात पृथ्वीयामा उत्पन्न यश छ 'तं जहा' मा प्रभारी छ.-रयणप्पभाए नाव आहेसप्तमाए' ते २नमा पृथ्वीमा ५ अत्य- यश,. .
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy