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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१ सू०४ जघन्यस्थितिकनैरयिकाणां नि० ४०१ भदन्त ! 'जे भविए' यो भव्यः-योग्यः 'जहन्नकाल टिइएमु रयणप्पभापुढची नेरइएसु' जघन्यकालस्थितिकरत्नप्रमापृथिवीसंवन्धिनैरपिकेषु 'उजवज्जित्तए' उपपत्तुम् ‘से णं भंते' स खलु भदन्त ! 'केवइय काल० जाव' कियत्कालस्थितिकेषु नैरयिकेषु 'उबरज्जेज्जा' उत्पधेत इति प्रश्नः । भगवानाह-गोयमा' हे गौतम! 'जहन्नेणं दसवासहस्स िइएसु' जघन्येन दशवर्षसहस्रस्थितिकेषु नैरयिकेषु उत्पधेत इत्यग्रिमेण संबन्धः, 'उकोसेण वि' उत्कर्षेणापि 'दसवाससहस्सटिइएसु' दशवर्ष सहस्रस्थिति के पु नैरयिकेषु 'उववज्जेज्जा' उत्पधेत इति । ते गं भंते ! जीवा' ते खलु भदन्त ! जीवा एकसमयेन कियन्तो नरकावासे समुत्पधन्ते इति प्रश्नः। उत्तरमाह-'सेसं तं चेव जहा सत्तमगमए' शेष तदेव उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला है और वह 'जे भविए जहनकालडिइएसु रयणप्पभा पुढवीनेरइएस्सु उपजिजत्तए' जघन्य काल की स्थिति वाले रत्नप्रभा पृथिवी के नरयिकों में उत्पन्न होने के योग्य है, तो ऐसा वह तियश्च जीव 'केवइय० काल. जाव' फिनने काल की स्थितिवाले नैरपिकों में उत्पन्न होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा !जहन्नेण दसवाससहस्सटिएसु' हे गौतम ! वह उन नैरयिकों में उत्पन्न होता है कि जिनकी जघन्य से दश हजार वर्ष की स्थिति है, और 'उक्कोसेणं वि दसवाससहस्सटिइएस्सु उत्कृष्ट से भी जिनकी स्थिति १०००० वर्ष की है, अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'ते ण भंते ! जीवा०' हे भदन्त । ऐसे वे जीव एक समय में वहां कितने उत्पन्न होते हैं ?-इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'सेसं तं चेव जहा सत्तमगमए' हे गौतम ! सवा २ तिय - Gree अनी स्थितिवाणी छ, सनत जहन्नकालदिइएस रयणप्पभापुढवीनेरइएसु उववज्जित्तए' धन्य जनी स्थितिवाणा प्रमा પૃથ્વીના નૈ વિકેમાં ઉત્પન્ન થવાને યોગ્ય છે, એવું તે તિર્યંચ છવ 'केवइय० काल. जाव' ईटानी थितिवाणा नयिमा 64-1 थाय छ १ मा प्रश्नन। त्तरमा गीतभस्वामीन ४३ छ8-'गोयमा ' जहन्नेणं दसवाससहस्सद्विइएसु' गौतम! तसे नैयिभi Grपन्न थाय छे रेनी स्थिति धन्यथी श M२ वी 2. भने 'उकोसेणं वि दसवाससहस्स. द्विइएसु' टथी ५५ रेमनी स्थिति १०००० स २ पनी छे. व गौतमस्वामी प्रसुन मे पूछे छे -'ते णं भते जीवा०' सस. વન્ એવા તે જીવે એક સમય: ત્યાં કેટલા ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના - उत्तरमा प्रभु के छ -'सेस त चेव जहा सत्तमगमए' गौतम! मा भ० ५१
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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