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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ. १ सू०४ जघन्यकालस्थितिकनैरयिकाणां नि० ३८५ तदेव - परिमाण संहननावगाहनासंस्थानलेइयादित आरभ्यानुबन्धान्तं सर्वमपि पूर्ववदेव ज्ञातव्यम् । पूर्वाऽपेक्षया यदिह बैलक्षण्यं तद्दर्शयति 'नवरं' इत्यादि, 'नवरं इमाई तिनि जाणताई' नवरम् - केवलम् इमानि वक्ष्यमाणानि त्रीणि नानाखानि पूर्वापेक्षया भेदः स्थलत्रये इत्यर्थः, तदेव दर्शयति- 'आउ' इत्यादि, 'आउ' अज्झवसाणा अणुबंधो य' आयुरध्यवसानानि अनुवन्धश्व, आयुषि अध्यवसानेषु अनुबन्धेच वैलक्षण्यम्, मेद इति तत्र आयुषि वैलक्षण्यं दर्शयति- 'जहन्नेर्ण' इत्यादि, 'जहनेणं हि अंतोमुहुत्त' जघन्येन स्थितिरन्तर्मुहूर्तम् 'उक्को सेण त्रि अंतोतं' उत्कर्षेणापि आयुरन्तर्मुहूर्त्तमेव जघन्यकालस्थितिक पर्याप्ता संज्ञिपश्च न्द्रिययोनिकानाम्, अध्यवसानानि, दर्शयितुं प्रश्नयन्नाह - ' तेसि णं' इत्यादि, इसमें उन्होंने यह कहा है कि इस उत्पाद कथन से अतिरिक्त और जो परिमाण, संहनन अवगाहना संस्थान लेश्या आदि अनुबन्धान्त तक का कथन है वह सब भी पूर्वोक्त जैसा ही जानना चाहिये, परन्तु उस कथन की अपेक्षा यहां के कथन में जो भिन्नता है वह 'नवरं इमाई'तिन्नि णाणत्ताई' वह इन तीन स्थानों में है - ' आउ, अज्झवसाणां अणुबंधोय 'एक आयुस्थान में, द्वितीय अध्यवसानस्थान में और तृतीय अनुबन्धस्थान में' आयुस्थान में जो वैलक्षण्य है-- उसे सूत्रकार ने 'जहनेणं ठिई अंतोमुद्दत्तं' उक्कोसेणं वि अतोमुहुत्तं इस पाठ द्वारा प्रकट किया है - यहां आयु जघन्य से अन्तर्मुहर्त की और उत्कृष्ट से अन्त की कही है। " अध्यवसान स्थानों में विलक्षणता प्रगट करने के लिये प्रश्नोत्तर रूप से यह आगे का कथन है- गौतम ने इस विषय में प्रभु से ऐसा पूछा ઉત્પાત સૂત્રના કથનથી ભિન્ન .બીજા જે પરિમાણુ, સ'હૅનન, અવગાહના, સસ્થાન, લેશ્યા, વિગેરે અનુખન્ય સુધીનું કથન છે, તે સઘળુ પહેલાં કહ્યા પ્રમાણે જ સમજવુ. પરતુ તે કથનની અપેક્ષાએ અહિંના કથનમાં જે ફેર ३२ छे, ते 'नवरं इमाइ तिन्नि णाणत्ताई" मा स्थानामा छे. 'भाउँ, असाणा, अणुबघा य' मे आयुस्थानभां जीन अध्यवसान स्थानमा अने ત્રીજુ અનુષધ રથનમાં આયુ સ્થાનમાં જે ફેરફાર છે, તેને સૂત્રકારે દ્દठिई अंतो मुहुत्तं उक्कोसेणं वि अंतोमुहुत्तं' मा सूत्रपाठ द्वारा પ્રગટ કરેલ છે અર્થાત્ આયુ જઘન્યથી અન્તર્મુહૂત' સુધીની છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી પણ અન્તમુહૂતની છે હવે અધ્યવસાનસ્થામાં વિષ્ણુપણુ ખતાવવા માટે પ્રશ્નોત્તરરૂપથી આગળનુ કથન કરે છે.-ગૌતમસ્વામીએ આ વિષયમાં પ્રભુને એવું પૂછ્યું છે भ० ४९
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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