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________________ भगवती उववजंति' यदि जलचरस्थलचरखेचरेभ्य आगल्प उत्पद्यन्ते तदा 'किं पज्जत्तए. हितो उपवज्जति' किं पर्याप्तकेय उत्पद्यन्ते अथवा 'अपज्जएहिती उववज्जति' .. अपर्याप्तकेभ्य आगत्य उत्पद्यन्ते हे भदन्त । असंक्षिपश्चेन्द्रियतियग्योनिकजल. परेभ्य आगत्य अथवा तथाविधस्थलचरेभ्य आगत्य समुत्पधन्ते अथवा तथा. विध खेचरेभ्य आगत्य समुत्पद्यन्ते ते कि पर्याप्तकेभ्योऽपर्याप्तकेभ्यो वा आगत्योत्पश्यन्ते इति प्रश्नः । भगवानाह-गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'पज्जत्तरहिवो उववज्जति' पर्याप्त केभ्य उत्पद्यन्ते 'णो अपज्जत्तएहितो उपवजंति' नो अपर्याप्तकेभ्य उत्पद्यन्ते नरके नारकाणाम् तथाविधपर्याप्तकानामेव उत्पत्ति भवति न तु अपर्याप्तकानामिति । 'पज्जत्तप्रसनिपंचिंदियतिरिक्खकी पर्याय से जीव उत्पन्न होते हैं । अव गौतम प्रभु से ऐला पूछते है-'जा जलचरथलचरखहचरेहितो उववति -किं पज्जत्तएहितो उचजति अपज्जत्तए० उ०' हे भदन्त ! यदि जलचर स्थलचर और खेचर इनसे आकरके जीव नारक की पर्याय से उत्पन्न होते हैं-तो क्या वे पर्यासक जलचरों से स्थलचरों से या खेचरों से आकर के उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्तक जलबरों से स्थलचरों से था खेचरों 'से आकर के उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं'गोयमा! पजत्तएनितो उववज्जति, णो अपज्जत्तएहितो उपव जति' हे - गौतम ! पर्याप्त जलचरों से स्थलचरों से और खेचरों से आकरके जीव नारक की पर्याय से उत्पन्न होते हैं अपर्यातक जलचरों से स्थलचरों से और खेचरों से आकरके जीव नारक की पर्याय से उत्पन्न नहीं होते हैं। इस संघ ' शथी गौतमस्वामी प्रभुन मे पूछे छ -'जइ जलचस्थलचर खहवरे. हिता उजवन्जंति- िपज्जवहिता उववज्जति, अपज्जत्तए० उव० है मगपन् જે જલચર સ્થલચર અને ખેચર છમાંથી આવેલ જીવ નારકની પર્યાયથી ઉત્પન્ન થાય છે, તે શું તેઓ પર્યાપ્ત જલચરથી, કે સ્થળચરોથી અથવા ખેરોમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? કે અપર્યાપ્તક જલસરમાંથી, , અથવા સઘળચરમાંથી અથવા મેચમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? આ प्रश्न उत्तरमा प्रभु गौतमस्वामीन ४३ छ-'गायमा ! पज्जत्तएहिता उवष, ज्वति णो अपज्जत्तएहिती उववज्जति' गौतम ! पर्यात सयरोमांथी, થળચરામાંથી, અને ખેચરોમાંથી આવીને જીવ નારકની પર્યાયથી ઉત્પન્ન - થાય છે ? અપર્યાપ્ત જલચરમાંથી કે સ્થળચરામાંથી આવીને જીવનારકની
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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