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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२१ व. ५ पर्वकवनस्पतिजीवानामुत्पादादिनि० ॥ अथ पञ्चमो वर्गः प्रारभ्यते || चतुथवर्गे वंशादिवनस्पतिजीवानामुत्पादादिकं निरूप्य सम्पति पर्वक वनस्पति जातीयेनादिवनस्पतिजीवानाम् उत्पादादिकं दर्शयितुं पञ्चमं वर्ग प्रस्तौति- 'अहभंते ! इक्खु' इत्यादि । मू*म्-- अह अंते ! इक्खु - इक्खुवाडिया - वीरणा · इक्कड भमास सुंठिसर वे सतिमिरात पोरगनलाणं, एएसि णं जे जीवा मूलत्तार वकमंति ते पणं जीवा कओहितो उज्जेति एवं जव वसो त एत्थ वि मूलादीपा दस उद्देगा, नवरं खंधुसे देवो उबवज्जइ चकारि लेख्लाओ लेलं तं चैव ॥ सू० १ ॥ ॥ एकवीसहमे सए पंचभोग्ो समन्तो ॥ छाया - इक्षु वाटिका - वीरण दक्कड भास- सुष्ठी, घर, वेत्र तिमिरशतपर्वनलानाम् एतेषां खल ये जीवाः मूलतया अत्रक्रामन्ति ते खलु जीवां: कुत आगत्योत्पन्ते एवं यथैव वंशवर्गस्तथैवाचापि मूलादिका दशोदेशको, नवरं स्कन्धोद्देशे देव उत्पद्यते चतस्रो लेश्याः शेषं तदेत्र ॥०१॥ ॥ एकविंशतितमशतके पश्चनो वर्गः समाप्तः ॥ टीका--'३क्षुत आरभ्य नलपर्यन्तानां पर्वकालरपतिविशेषाणाम्, 'एएसि णं जे जीवा' एतेषाम् इक्षोरारभ्य नलान्खइनस्पतिविशेषाणाम् खलु ये जीवाः पांचवें वर्ग का प्रारंभ पंचम वर्ग -- चतुर्थवर्ग में वंश आदि वनस्पतियों में जीवों के उत्पाद आदि का निरूपण करके अब ये पर्वक वनस्पति के जो ईक्षु आदि वनस्पति हैं उनके जीवों के उत्पादक आदि को दिखाने के लिये पंचम वर्ग का कथन करते हैं इसका 'अए भंते इक्खु' हत्यादि प्रथम सूत्र है'अह भंले | इक्खु, खुडिया' इत्यादि टीकार्थ -- गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछ रहे हैं 'अह भंते! इक्खु પાંચમા વગના પ્રારભ ચેાથા વર્ગોમાં વાંસ વગેરે વનસ્પતિયેામાં થવાના ઉત્પાત વગેરનું નિરૂપણુ કરીને હવે પવની વનસ્પતિ જાતીના જે ઈક્ષુ-સેલડી વગેરે વનસ્પ તિઓ છે, તેના જીવાના ઉત્પાત વિગેરે ખતાવવા માટે પાંચમા વનું કથન ४श्वामां आवे छे. तेनुं पडे सूत्र मा प्रमाये छे - 'अह भंते । इक्खु' त्यिाहि टीअर्थ' - 'गौतमस्वाभी अलुने मे पूछे छे - अह भंते! इक्खु इक्खु • भ० ३४
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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